Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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सातवी प्रतिमा वाला श्रावक पान में सचित्त जल का तथा तत्काल पानी में डाले हुए सचित्त (कच्चा) लवण (नमक) आदि के रस से मिश्रित जल का त्याग करता है। स्वादिम में त्रसकायिक जीवों से युक्त सभी प्रकार के उदुम्बर, बरगद, प्लक्ष, काकोदुम्बर, पीपल- ये पांच प्रकार के उदुम्बरों का और ककड़ी आदि का त्याग करता
है।
स्वादिम में दातुन, पान (ताम्बूल), हरड़ आदि सभी प्रकार के सचित्त-स्वादिम का त्याग करता है। पूर्व की छ: प्रतिमाओं से युक्त श्रावक सात महीने तक विधिपूर्वक सभी प्रकार के सचित्त-द्रव्यों का त्याग करता है। इसे ही सचित्त त्याग (वर्जन) प्रतिमा कहते हैं।
____ उपासकदशांगसूत्रटीका में कहा गया है कि पूर्वोक्त सभी प्रतिमाओं का परिपालन करता हुआ, जो समस्त सचित्त-आहार का त्याग कर देता है, वह सचित्ताहारवर्जन-प्रतिमाधारी है।'
दशाश्रुतस्कंध के अनुसार दिन-रात ब्रह्मचर्य के पालन के साथ जो पूर्ण रूप से सचित्त-आहार का परित्याग करता है, वह गृह-आरम्भ का परित्यागी सचित्त-आहारवर्जन-प्रतिमाधारी है। इसमें गृहस्थ उस प्रतिमा को एक दिन, दो दिन तथा उत्कृष्ट सात मास तक पालन करता है। दिगम्बर-परम्परा में इसको पांचवें क्रम पर रखा है। इसके स्वरूपगत् विभिन्न पहलुओं को दृष्टिगत रखकर यहाँ इसका विवेचन किया जा रहा है। दिगम्बर-परम्परा में इसका सचित्तविरति नाम दिया गया है। रत्नकरण्डक-श्रावकाचार, कार्तिकेयानुप्रेक्षा और वसुनन्दि-श्रावकाचार में जो कच्चे मूल, फल, शाक, शाखा, कैर, फूल और बीजों को नहीं खाता है, वह सचित्तविरतिप्रतिमा का
1 पंचा एक प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 10/25 - पृ. सं. - 171 2 उपासकद ांग सूत्रटीका - आ. अभयदेवसूरि - पृ. सं. - 67 3 दशाश्रुतस्कंध 4 (क) रत्नकरण्डक श्रावकाचार - स्वामी समन्तभद्र - 141
(ख) कार्तिकेयानुप्रेक्षा - स्वामी कार्तिकेय - 78,79 (ग) वसुनन्दी श्रावकाचार – आ. वसुनन्दी - पृ. सं. - 295
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