Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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उपासकदशांगटीका के अनुसार नहीं देने के भाव से सचित्त वस्तु को अचित्त वस्तु से एवं अचित्त वस्तु को सचित्त वस्तु से ढंक देना सचित्त-पिधान –अतिचार है।'
चारित्रसार के अनुसार देने योग्य आहार को सचित्त पत्र आदि से ढंकना सचित्त-पिधान-अतिचार है।
तत्त्वार्थ-सूत्र के अनुसार देय योग्य वस्तं को सचेतन वस्तु से ढंक देना सचित्त-पिधान-अतिचार है। 3. कालातिक्रम- आचार्य हरिभद्र के पंचाशक-प्रकरण के अनुसार भिक्षा नहीं देने की इच्छा से भिक्षा का समय बीत जाने के बाद या उससे बहुत पहले साधु को आहार हेतु निवेदन करना कालातिक्रम-अतिचार है।
उपासकदशांगटीका के अनुसार भिक्षा का समय टालकर भिक्षा देने के लिए तत्पर होना कालातिक्रम-अतिचार है।
चारित्रसार के अनुसार आहार देने के समय का उल्लंघन कर आगे या पीछे आहारादि बनाने को कालातिक्रम बताया गया है।
तत्त्वार्थ-सूत्र के अनुसार किसी को कुछ देना न पड़े, इस आशय से भिक्षा के समय का उल्लंघन कर आहारादि बनाना कालातिक्रम-अतिचार है।' 4. परव्यपदेश- आचार्य हरिभद्र के पंचाशक-प्रकरण के अनुसार नहीं देने की इच्छा से अपनी वस्तु को दूसरे की है- ऐसा कहना परव्यपदेश–अतिचार है।
1 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1/56 – पृ. - 54
चारित्रसार-श्रावकसंग्रह - चामुण्डाचार्य - पृ. - 249 'तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति-7/31 - पृ. - 190 + पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/32 - पृ. - 14 'उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1/56 - पृ. - 54 'चारित्रसार - चामुण्डाचार्य - पृ. - 14
तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति-7/31 - पृ. - 190 8 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/32 - पृ. - 14
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