Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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कालाइक्कमपरववएसं मच्छरिययं चेव।।' 1. सचित्त-निक्षेप 2. सचित्त-पिधान 3. कालातिक्रम 4. परव्यपदेश 5. मात्सर्य।
1. सचित्त-निक्षेप- आचार्य हरिभद्र के पंचाशक-प्रकरण के अनुसार साधु को देने योग्य वस्तु को नहीं देने की इच्छा से उसमें सचित्त, पृथ्वी, पानी आदि रख देना सचित-निक्षेप-अतिचार है।
उपासकदशांगटीका के अनुसार दान न देने की इच्छा से अचित्त-निर्जीव-संयमी के लेने योग्य पदार्थों में सचित्त-सजीव धान्य आदि में डाल देना, अर्थात् लेने योग्य पदार्थों में सचित पदार्थ मिला देना सचित-निक्षेप-अतिचार है।
तत्त्वार्थ-सूत्र के अनुसार खाने-पीने की देने योग्य वस्तु को मुनि को काम में न आने जैसी बना देने की बुद्धि से किसी सचेतन वस्तु में रख देना सचित्त -निक्षेप-अतिचार है। 2. सचित्त-पिधान- पंचाशक-प्रकरण के अनुसार साधु को देने योग्य वस्तु को नहीं देने की इच्छा से सचित्त पत्तों या फलादि ढंक देना सचित्त-पिधान-अतिचार है।'
1 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/32 - पृ. - 13 2 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1/56 - पृ. -54
तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति-7/31 - पृ. - 190 * पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि-1/32 – पृ. - 14
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