Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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श्रावक पौषध में पूर्णरूपेण विवेक रखें- जिस स्थान पर साधना करना हो, उस स्थल को चरवले (रजोहरण) से प्रतिलेखन करें। यदि प्रतिलेखन नहीं करता है या अच्छी तरह से नहीं करता है, तो अतिचार लगता है। मल मूत्रादि परठने के लिए भूमि को दृष्टि से देखें, क्योंकि भूमि पर छोटे-छोटे जीव-जन्तु आदि हो सकते हैं। यदि भूमि को दृष्टि से देखे बिना पानी, मूत्र आदि परठता है, तो उसे अतिचार लगता है।
पौषध में आसन-संथारा आदि बिछाने के पूर्व संथारे की प्रतिलेखना करे व बिछाते समय भूमि की प्रतिलेखना करे। यदि श्रावक इस प्रकार की विधि नहीं करता है, तो उसे अतिचार लगता है।
पौषध में किसी भी उपकरण को उठाते व रखते समय दृष्टि एवं चरवले (रजोहरण) से प्रतिलेखना करें। यदि इस प्रकार का आचरण नहीं करता है, तो उसे अतिचार लगता है।
पौषध लेने पर याद रखना है कि मैं पौषध में हूँ। मुझे चार, अथवा आठ प्रहर तक सावद्य-क्रिया आदि का त्याग है। मैंने इतने समय में पौषध लिया व इतने समय पर मेरा पौषध पूर्ण होगा। यदि समय आदि स्मरण में नहीं रखता है, भूल जाता है, तो अतिचार लगता है।
पौषधव्रत - मेरी दृष्टि में
पौषधव्रत में चार बातों का पालन करने का विधान है1. तपश्चर्या - पौषध के साथ उपवास करना। खरतरगच्छ एवं स्थानकवासी-परम्परा में आज भी यह नियम है कि पौषध में उपवास किया जाता है, परन्तु तपागच्छ-परम्परा में उपवास, आयम्बिल तथा एकासन करने का भी विधान है। 2. शरीर-सत्कार का त्याग - जिस दिन पौषध करना है, उस दिन स्नान नहीं करना चाहिए, शरीर का श्रृंगार नहीं करना चाहिए, सादगी वेशभूषा में पौषध करना चाहिए, पौषध में हाथ-पैरों में मेहन्दी नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि यह भी एक प्रकार से शरीर का श्रृंगार है। पौषध के दिन आभूषणों से सजकर नहीं जाना चाहिए, क्योंकि शरीर का
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