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श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में भी अष्टमी एवं चतुर्दशी को पर्व तिथि कहा है । 2 उपासकदशांगसूत्र में अभयदेवसूरि ने द्वितीया, पंचमी, अष्टमी, एकादशी तथा चतुर्दशी को पर्वतिथि माना है।' रत्नकरण्डक - श्रावकाचार में भी अष्टमी एवं चतुर्दशी पर्व- तिथियाँ बताई गई है।
योगशास्त्र और तत्त्वार्थभाष्य में अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा तथा अमावस्या को पर्व- तिथि कहा गया है । "
इन तिथियों के दिनों में पौषध - व्रत का पालन विशेष रूप से किया जाता
है।
अतिचार आचार्य हरिभद्रसूरि ने पंचाशक - प्रकरण में पौषधोपवासव्रत दूषित न हो, इस हेतु निर्देश किया है कि श्रावक को निम्न बातों का ध्यान रखते हुए अपने पौषधोपवासव्रत को अखण्ड रखे । भूल से भी कहीं पौषधोपवास में दोष न लग जाए, इस हेतु किन दोषों की अधिक सम्भावना रहती है, उनका उल्लेख किया गया है
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अप्पडि दुप्पड लेहियऽपमज्जसेज्जाइ वज्जई एत्थ ।
संमं च अणणुपालण माहाराईसु सव्वेसु । । '
1. अप्रतिलेखित या दुष्प्रतिलेखित शय्या संस्तारक अतिचार ।
2. अप्रमार्जित या दुष्प्रमार्जित - शय्या - संस्तारक - अतिचार । 3. अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित - उ - उच्चार - प्रश्रवण - भूमि - अतिचार | 4. अप्रमार्जित - दुष्प्रमार्जित - उच्चार - प्रश्रवण - भूमि - अतिचार ।
2 श्रावकप्रज्ञप्तिटीका - आ. हरिभद्रसूरि - 321
3 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि
पृ. - 45
4 पर्वण्यष्टम्यां च ज्ञातव्यः प्रोषधोपवासस्तु समन्त भद्राचार्य
3 (क) योगशास्त्र - हेमचन्द्राचार्य - 3/85
(ख) तत्त्वार्थ-भाष्य - 7/16 - पं. खूबचन्द - 7 / 16
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- रत्नकरण्डक-श्रावकाचार - 106
1 पंचाशक - प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि - 1/30 - पृ.
12
2 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1 / 55 - पृ. 53
3 तत्त्वार्थ सूत्र - आ. उमास्वाति - 7 / 26 - पृ.
189
4
पंचाशक- प्रकरण आ. हरिभद्रसूरि- 1/30 - पृ. - 13
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