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चारित्रसार के अनुसार बिना शोधन किए भूमि पर मल-मूत्रादि छोड़ना अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित-उच्चार–प्रश्रवणभूमि-अतिचार कहते हैं।'
तत्त्वार्थ-सूत्र के अनुसार आखों से देखे बिना ही एवं कोमल उपकरण से प्रत्यवेक्षण एवं प्रमार्जन किए बिना ही मलमूत्र श्लेष्म आदि का त्याग करना अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित-उच्चार–प्रश्रवणभूमि-अतिचार है।' 4. अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित-उच्चार–प्रश्रवणभूमि- पंचाशक-प्रकरण के अनुसार साफ किए बिना या अच्छी तरह साफ किए बिना मलमूत्र की भूमि का उपयोग करना अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित-उच्चार–प्रश्रवणभूमि-अतिचार है।'
उपासकदशांगटीका के अनुसार भूमि को पूंजे बिना मल मूत्रादि को, विसर्जित करने को अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित-उच्चार–प्रश्रवणभूमि-अतिचार कहा है।
चारित्रसार के अनुसार मल-मूत्रादि को पूंजे बिना विसर्जित करना अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित-उच्चार–प्रश्रवणभूमि-अतिचार है।' 5. सम्यक्-अननुपालन - पंचाशक-प्रकरण के अनुसार आहार–पौषध, देहसत्कार–पौषध आदि का शास्त्रोक्त-विधि के अनुसार पालन नहीं करना सम्यक् अननुपालन-अतिचार है।
5 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि-1/30 - पृ. - 13 'उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1/55 - पृ. - 53
चारित्रसार - चामुण्डाचार्य - पृ. - 12
1 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/30 - पृ. - 13
तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति-7/29 - पृ. - 189 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसरि- 1/55 - प्र. -53 4 तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति-7/29 - पृ. - 189
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