Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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अतः अणुव्रती ऐसा पत्र नहीं लिखे, जिसका अर्थ अनर्थ का हेतु बन जाए। अशोक सम्राट ने अपने पुत्र कुणाल को पत्र दिया जिस पर लिखा था- 'त्वम् अधीतव्यम्'। उस पत्र में सौतेली माँ ने अधी पर अनुस्वार लगा दिया, जिससे वह 'त्वम् अंधीतव्यम्' बन गया । इससे 'तुम अध्ययन करना, उसके स्थान पर वहां अर्थ हो गया 'तुम अंधे हो जाना ।' फिर क्या था, पिता की आज्ञा समझकर वह अंधा हो गया, अर्थ का अनर्थ हो गया, अतः ऐसे जाली पत्र न लिखें, जिससे दूसरों का अनर्थ हो जाए ।
चेक पर जाली हस्ताक्षर करना, झूठे दस्तावेज बनाना, जमीनों पर अनधिकार चेष्टा करना श्रावकों के लिए शोभास्पद नहीं है, अतः स्थूलमृषावादविरमण-व्रतधारी इन अतिचारों के पूर्ण रूप से त्याग करें । आचार्य हेमचन्द्र ने योगशास्त्र' में सत्याणुव्रत का विवेचन करते हुए स्पष्ट किया है कि इन पाँच प्रकार के स्थूल असत्यों का वर्जन की क्या आवश्यकता है।
योगशास्त्र के अनुसार वर-कन्या - सम्बन्धी असत्य वचन, गौ आदि पशुओं से सम्बन्धित असत्य वचन, भूमि - सम्बन्धी असत्य वचन, कूट- लेख - करण तथा न्यासापहार और कूटलेख पुण्य का क्षय करने वाले हैं, अतः श्रावक को असत्य वचन का वर्जन करना चाहिए ।
स्थानांगसूत्र के अनुसार सत्याणुव्रती को मिथ्या वचन, तिरस्कारयुक्त वचन, कठोर वचन, अविचारपूर्ण वचन, कलह को उत्पन्न करने वाले वचन, दबी बात को पुनः उभारने वाले वचनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
योगशास्त्र के अनुसार जो महापुरुष ज्ञान और चारित्र के स्रोत सत्य को ही बोलते हैं, वे अपने चरण रेणु से धरती (पृथ्वी) को पवित्र कर देते हैं । तत्त्वार्थ सूत्र
1 सर्वलोकविरूद्धं यद्यद्धि भवसितघातकम् ।
यद्विपक्ष च पुण्यस्य न वदेत्तसूनृतम् ।। - आचार्य हेमचन्द्र
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योगशास्त्र - 2/55 - पृ. 277 इमाइं छ अवयणाइं वदित्तए अलियवयणे हीलियवयणे खिंसितवयणे फरसवयणे । गारत्थियवयणे, विउसविंत वा पुणाउदीरित्तए । । - आप्त पुरुश प्रणीत स्थानांग सूत्र - 6/3 3 ज्ञान - चारित्रयोर्मूलं सत्यमेव वदन्ति ये ।
धात्री पवित्रीक्रियते तेषां चरणरेणुभिः ।। - आचार्य हेमचन्द्र - योगशास्त्र - 2/63 - पृ. - 291 4 मिथ्योपदे रहस्याभ्याख्यान कूटलेखक्रिया न्यासापहार साकार मन्त्रभेदाः
आचार्य उमास्वाति – तत्त्वार्थ- सूत्र - 7/2
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धूलमुसावायस्स उ विरई दुच्चं स पंचहा होई । कन्ना - गो- मुआलियनासहरण कूडसक्खिखज्जे । ।160 ।।
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