Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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उपासकाध्ययन में सोमसूरि ने परिग्रह के बाह्य व आन्तरिक - दो भेद किए
हैं, फिर बाह्य परिग्रह के दस भेद किए हैं
1. खेत 2. धान्य 3. धन 4 मकान 5. तांबा - पीतल आदि धातु 6. शय्या 7. आसन 8.
दास-दासी 9. पशु एवं 10. भोजन ।
आन्तरिक - परिग्रह के चौदह भेद निम्न प्रकार से बताए गए हैं
1. मिथ्यात्व 2. पुरुषवेद 3. नंपुसकवेद 4. स्त्रीवेद 5. हास्य 6. शोक 7. रति 8. अरति 9. भय 10. जुगुप्सा 11. क्रोध 12. मान 13. माया और 14. लोभ ।
तत्वज्ञान- प्रवेशिका में परिग्रह के दो भेद बताए हैं- जंगम परिग्रह व स्थावर परिग्रह | जंगम परिग्रह - पत्नी, पुत्र-पुत्री, स्वजन - परिजन, परिवार, हाथी, घोड़े, ऊँट, गाय, बैल, भैंस आदि ।
स्थावर परिग्रह
आदि ।'
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क्षेत्र, खेत, वन - उपवन, भवन, जमीन, मकान, मिल, कल-कारखाने
भगवती आराधना में दस प्रकार के परिग्रह बताए गए हैं- 1. खेत 2. मकान 3. धन 4. धान्य 5. वस्त्र 6. भाण्ड 7 दास-दासी, 8 पशुयान 9. शय्या और 10. आसन ।' आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक - प्रकरण के प्रथम अध्याय में सम्यग्दृष्टि श्रावकों को अणुव्रत लेने की प्रेरणा दी तथा पंचाशक के प्रथम अध्याय की अठारहवीं गाथा में परिग्रह परिमाण - व्रत को सुरक्षित रखने के लिए इतने कार्यों को नहीं करना चाहिए - ऐसा संकेत किया है और व्रत के अतिक्रमण की पांच श्रेणियाँ दर्शाई हैं
1. क्षेत्रवस्तु की मर्यादा का अतिक्रमण ।
2. हिरण्य - सुवर्ण के परिमाण का अतिक्रमण ।
3. धन-धान्य के परिमाण का अतिक्रमण ।
4. द्विपद - चतुष्पद के परिमाण का अतिक्रमण । 5. कुप्य के परिमाण का अतिक्रमण ।
' उपासकाध्ययन - सोमदेवसूरि – श्लोक - 432
' तत्वज्ञान - प्रवेशिका प्र. सज्जनश्री - भाग 3 - पृ. - 20
2 भगवती आराधना - विजयाटीका शिवार्य - 19
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