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2. प्रेष्य-प्रयोग- आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण में इस शिक्षाव्रत के दूसरे अतिचार का वर्णन करते हुए कहा है कि सीमित क्षेत्र के बाहर कार्य पड़ने पर दूसरे को भेजना प्रेष्य-प्रयोग–अतिचार है।
उपाकदशांगटीका के अनुसार मर्यादित क्षेत्र से बाहर के क्षेत्र के कार्यों को सम्पादित करने हेतु सेवक पारिवारिक व्यक्ति आदि को भेजना प्रेष्य-प्रयोग-अतिचार है।
तत्त्वार्थ-सूत्र के अनुसार स्थान-सम्बन्धी स्वीकृत मर्यादा के बाहर काम पड़ने पर स्वयं न जाना और न दूसरे से ही उस वस्तु को मंगवाना, किन्तु नौकर आदि से आज्ञापूर्वक वहाँ बैठे-बिठाए काम करा लेना प्रेष्य-प्रयोग–अतिचार है। यह मन्तव्य पंचाशक-प्रकरण से कुछ भिन्नता रखता है।
तत्त्वज्ञान-प्रवेशिका के अनुसार सीमा से बाहर वस्तु को भेजना प्रेष्य-प्रयोग–अतिचार है।' 3. शब्दानुपात - पंचाशक-प्रकरण के अनुसार मर्यादित क्षेत्र के बाहर के व्यक्ति को बुलाने के लिए खांसी आदि से संकेत करना शब्दानुपात-अतिचार है।'
उपासकदशांगटीका के अनुसार मर्यादित क्षेत्र से बाहर का कार्य सामने आ जाने पर ध्यान में आ जाने पर, छींककर, खांसी लेकर या किसी प्रकार का शब्द-संकेत कर पड़ोसी आदि से कार्य कराना शब्दानुपात-अतिचार है।
' तत्त्वज्ञान-प्रवेशिका - प्र. सज्जनश्री - भाग- 3 – पृ. - 25
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1 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि-1/28 - पृ. - 12
उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1/54 - पृ. - 51 3 तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति-7/26 - पृ. - 189 + तत्त्वज्ञान-प्रवेशिका - प्र. सज्जनश्री - भाग-3 - पृ. - 25
पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि-1/28 - पृ. - 12 6 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1/54 - पृ. - 52
तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति-7/26 - पृ. - 189
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