Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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तत्त्वार्थ-सूत्र के अनुसार स्वीकृत मर्यादा के बाहर स्थित व्यक्ति को बुलाकर काम करवाने के लिए खांसी आदि द्वारा उसे पास आने के लिए सावधान करना शब्दानुपात-अतिचार है।
____ तत्त्वज्ञान-प्रवेशिका के अनुसार सीमा से बाहर शब्दादि संकेत करके, स्वयं का होना सूचित करके, अर्थात् मैं यहाँ हूँ- ऐसा ध्यान आकृष्ट कर कार्य करवाना शब्दानुपात-अतिचार है। 4. रुपानुपात- पंचाशक-प्रकरण में आचार्य हरिभद्र ने कहा है- मर्यादित क्षेत्र के बाहर के व्यक्ति को अपने पास बुलाने के लिए शारीरिक-मुद्रा द्वारा संकेत करना आदि रूपानुपात-अतिचार है।
उपासकदशांगटीका के अनुसार मर्यादित क्षेत्र से बाहर का काम करवाने के लिए मुँह से कुछ न बोलकर हाथ आदि से संकेत करना रूपानुपात- अतिचार है।
तत्त्वार्थ-सूत्र के अनुसार किसी तरह का शब्द न करके, आकृति बतलाकर दूसरे को अपने पास आने के लिए सावधान करना रूपानुपात-अतिचार है।'
__तत्त्वज्ञान-प्रवेशिका के अनुसार सीमा से बाहर रहे हुए व्यक्ति को किसी क्रिया का संकेत करना रूपानुपात-अतिचार है।'
तत्त्वज्ञान-प्रवेशिका - प्र. सज्जनश्री - भाग-3 - पृ. - 25 2 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/28 – पृ. - 12 3 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1/54 - पृ. - 52 'तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति-7/26 - पृ. - 189 'तत्त्वज्ञान-प्रवेशिका - प्र. सज्जनश्री - भाग-3 - पृ. - 25
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