Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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व्याख्या मिलती है। निम्न अतिचार में सेविका स्त्री को दासी और सेवक पुरुषों को दास कहा गया है। यहाँ द्विपद-चतुष्पद शब्द की जगह दास-दासी नाम देकर उसी की चर्चा की गई है।
सामान्यतया, द्विपद का अर्थ दास-दासी और चतुष्पद का अर्थ पशुओं से लेना चाहिए। 5. कुप्यभाव - आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक में परिग्रह-परिमाण के पांचवे कुप्य अतिचार का वर्णन करते हुए कहा है कि गृहोपयोगी वस्तुओं जैसे- गद्दा, रजाई, थाली, परात, कटोरा आदि के परिमाण का उल्लंघन कुप्य-परिमाणातिक्रमण-अतिचार है।'
उपासकदशांगटीका में आचार्य अभयदेवसूरि ने गृहोपयोगी (घर का सामान), जैसे- कपड़े, खाट, आसन, बिस्तर आदि के सम्बन्ध में किए गए परिमाण के उल्लंघन को कुप्य-परिमाणातिक्रमण अतिचार कहा है।' तत्त्वार्थ-सूत्र में भी कुप्य-प्रमाणातिक्रमण-अतिचार का वर्णन पंचाशक-प्रकरण के अनुसार ही है।
चारित्रसार में वस्त्र, कपास, रेशम, चन्दन, बर्तन आदि को कुप्य कहकर इनका अतिक्रमण करना कुप्यपरिमाणातिक्रमण-अतिचार कहा गया है।
पंचाशक-प्रकरण में आचार्य हरिभद्र ने पांचवें अणुव्रत में परिग्रहपरिमाण-व्रत की चर्चा की है, अतः गृहस्थ-वर्ग को जीवन को अनुकूल बनाने के लिए परिग्रह का परिमाण कर ही लेना चाहिए, शुभ-चिन्तन द्वारा धन की लिप्सा से मन को मुक्त कर परिग्रह परिमाण निश्चित कर प्रतिज्ञा ले ही लेना चाहिए। प्रतिज्ञा लेने पर मन की आकांक्षाएँ कम हो जाती हैं, इच्छाओं पर निरोध हो जाता है।
एक सेठ ने अणुव्रत धारण कर परिग्रह परिमाण कर लिया। उसने बारह महीने के लिए दो लाख की मर्यादा की। उसकी आय एक लाख थी, किन्तु पुण्य ने साथ
पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/18 – पृ. - 8
उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि-1/49 - पृ- 46 3 तत्त्वार्थ-सूत्र – आ. उमास्वाति-7/24 +चारित्रसारश्रावकाचार संग्रह - चामुण्डाचार्य - भाग-2 - पृ. -241
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