Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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आँखे नीचे करके चलें, दृष्टि चंचल न करें। अकारण अधिक न बोलें तथा बोलते समय नजर झुकाकर ही रखें। पाप-कार्य में किसी को प्रोत्साहित न करें- उत्तम कुल में उत्तम धर्म की प्राप्ति होने पर, जिनवाणी सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, तो अब निष्प्रयोजन पाप-बन्ध से बचना चाहिए। पशुओं के समान यह जन्म कहीं व्यर्थ न हो जाए, इसका ध्यान विशेष रूप से रखना चाहिए।
___ यदि व्यक्ति पाप छोड़ने में असमर्थ है, तो उसे दूसरों को पाप का उपदेश तो बिल्कुल नहीं देना चाहिए।
__ तिर्यंच जीवों के लिए भी बोलने में विवेक रखना चाहिए, अर्थात् तिर्यंचों को दुःख देने का, उन्हें मारने का, उनके कान-नाक आदि छेदने का, कसकर बांधने का, जला देने का, पानी नहीं पिलाने का, भोजन नहीं देने का, नाक-मुँह में छीका बंधवाने का, संतानों से अलग कर देने का, पक्षियों को पिंजरे में डालने का, सर्प, बिच्छु, कानखजूरा, सिंह, व्याघ्र, नेवला, कुत्ता, बिल्ली, चूहा आदि हिंसक जीवों को मारने का, जूं, लीख, चींटी, मकोडे, मक्खी, मच्छर, तिलचट्टा, खटमल, दीमक आदि को मारने का, जीव-जन्तुओं को मारने के लिए दवा छिड़कवाने का, जीवों को पकड़ने के लिए यन्त्र, जाल आदि बनवाने का उपदेश (आदेश) नहीं देना चाहिए। ऐसा करने से प्रयोजन हिंसा का दोष होता है, अतः अनर्थदण्ड है। इससे बचना चाहिए। हिंसात्मक साधन देने से बचें – हिंसात्मक साधन किसी को नहीं देना चाहिए, क्योंकि इन साधनों का दुरुपयोग कोई भी, कभी भी कर सकता है।
हिंसात्मक साधन देने पर कोई उनका दुरुपयोग नहीं करेगा- इसका क्या भरोसा ? अतः महापुरुषों ने इसका निषेध ही किया है।
एक सत्य घटना है- दो व्यक्तियों के बीच गहरी मित्रता थी। एक मित्र के पास बन्दूक का लायसेन्स था। दूसरा मित्र उस पहले मित्र के घर गया और कहा- 'मुझे आज शाम बाहर जाना है। जहाँ जा रहा हूँ, वहाँ चोरों का खतरा है, अतः मुझे तुम्हारी बन्दूक चाहिए, कल आकर लौटा दूंगा।' पहले मित्र ने उसे बन्दूक दे दी। बन्दूक लेकर वह घर आ गया और समय पर अपने ऑफिस चला गया। वहाँ बात दूसरी थी कि
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