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उपासकदशांग की टीका के अनुसार प्रमाद, अजागरूकता, असावधानी स्मृति अकरण है, अर्थात् मैं सामायिक हूँ, या सामायिक कर चुका हूँ, या सामयिक करना है, यह भूल जाना स्मृतिअकरण - अतिचार है ।
तत्त्वार्थ सूत्र के अनुसार एकाग्रता का अभाव, अर्थात् चित्त के अव्यवस्थित होने से सामायिक की स्मृति का न रहना स्मृति - अनुपस्थान है ।'
योगशास्त्र–स्वोपज्ञटीका, श्रावकप्रज्ञप्तिटीका आदि में सामायिक मुझे करना है या नहीं करनी है, अथवा मैं सामायिक कर चुका हूँ या नहीं - इस प्रमाद के कारण सामायिक में स्मृति न रहना - यह दोष माना गया है।
सर्वार्थसिद्धि के अनुसार सामायिक में सामायिक की स्मृति न रहना - यह दोष माना गया है।'
तत्त्वज्ञान-प्रवेशिका के अनुसार मेरे सामायिक है - इस बात को भूलकर सावध प्रवृत्ति करना स्मृति - अकरण - अतिचार है । 2 5. अनवस्थितकरण
पंचाशक - प्रकरण के अनुसार प्रमाद से चित्त की स्थिरता के
बिना सामायिक करने को अनवस्थितकरण - अतिचार कहते हैं ।
उपासकदशांगटीका के अनुसार सामायिक के नियतकाल के पूर्ण हुए बिना ही सामायिक - व्रत का पालन कर लेना अनवस्थितकरण - अतिचार है । 1
तत्त्वार्थ- सूत्र के अनुसार सामायिक में उत्साह का न होना, अर्थात् समय होने पर भी प्रवृत्ति न होना, अथवा ज्यों-त्यों प्रवृत्ति करना अनादर - अतिचार है। तत्त्वार्थ सूत्र में अनादर शब्द का प्रयोग किया गया है, जो पंचाशक से पृथक् है ।
1 सर्वार्थसिद्धि - आ. पूज्यपाद - 7/33
12 तत्त्वज्ञान - प्रवेशिक - प्र. सज्जनश्री - भाग - 3 - पृ. - 25
3 पंचाशक - प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/26 - पृ. - 11
4 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1 / 53 - पृ. 51
189
'तत्त्वार्थ सूत्र - आ. उमास्वाति - 7 / 28 पृ.
' श्रावकप्रज्ञप्तिटीका - आ. हरिभद्रसूरि - 3 /116
7 चारित्रसार - चामुण्डाचार्य - पृ. - 246
8
तत्त्वज्ञान - प्रवेशिक – प्र. सज्जन श्री भाग- 3 - पृ. - 25
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