Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
View full book text
________________
अर्थात्, शिक्षाव्रतों में पहला शिक्षाव्रत सामायिक है। निर्धारित समय तक सावद्य (पापयुक्त) कार्यों का त्याग करना और निरवद्य (पापरहित ) प्रवृत्ति करना सामायिकव्रत है।
विशेषावश्यक भाष्य में स्पष्ट कहा है कि- सामाइयम्मि उ कएसमणो इव सावओ हवई, अर्थात् सामायिक के समय में श्रावक श्रमण जैसा होता है। 1
सम्बोधसत्तरी में कहा है-
निंद पसंसासुसमो, समो य माणावमाणं कारीसु ।
समसयण परयण मणो सामाइयं संगओ जीओ ।।
अर्थात्, निन्दा और प्रशंसा, मान और अपमान, स्वजन और परजन, सभी में जिसका मन समान है, उसी जीव के द्वारा सामायिक, अर्थात् समभाव की सम्यक् साधना होती है। 2
विशेषावश्यक भाष्य में कहा है
जो समोसव्वभूएस, तसेसु थावरेसु य ।
तस्स सामाइयं होई, इह केवलि भासियं ।
अर्थात्, जो त्रस और स्थावर - सभी जीवों के प्रति समत्व से युक्त है, उसी परिभाषित किया है। इस प्रकार और
की वास्तविक सामायिक है- ऐसा केवलज्ञानियों कहा है
जस्स समाणिओ अप्पा, संजमे णिअये तवे ।
तस्स सामाइयं होई, इह केवलि भासियं । ।
अर्थात्, संयम, नियम और तप में जिसकी आत्मा संलग्न है, उसी की वास्तविक है- ऐसा केवलज्ञानियों ने परिभाषित किया है । '
सामायिक
पंचाशक - प्रकरण के अनुसार जिससे समभाव की प्राप्ति होती है, वह सामायिक है।
Jain Education International
विशेषावश्यक भाष्य
श्री जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण - गाथा - 2680 - पृ. - 375 2 संबोधसत्तरी - गाथा - 15
3 विशेषावश्यक भाष्य - श्री जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण - गाथा - 2680 - पृ. - 375
4 विशेषावश्यक भाष्य - श्री जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण - गाथा - 2679 - पृ. - 375
-
For Personal & Private Use Only
297
www.jainelibrary.org