Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
View full book text
________________
उसकी पत्नी किसी अन्य व्यक्ति के प्रेमजाल में उलझी हुई थी और उस दिन वह अपने प्रेमी के साथ उसका घर छोड़कर जाने वाली थी। उन दोनों का मिलने का समय दोपहर तीन बजे का था। वह मित्र उनके मिलने के समय पर ऑफिस से घर पहुँच गया। वहाँ उन दोनों को देखकर वह आग-बबूला हो गया। फिर क्या था ? उसने बन्दूक उठाई
और गोलियाँ चला दी। वे दोनों वहीं पर ढेर हो गए। गोलियों की आवाज सुनकर भीड़ इकट्ठी हो गई, पुलिस भी आ गई और उसे पकड़ कर ले गई। जिसके नाम से बन्दूक का लायसेन्स था, वह भी पकड़ा गया। हत्या में सहयोगी का आरोप उस पर भी लगा और कुछ समय की सजा का वह भी भागीदार हो गया, इसलिए ही हिंसात्मक साधनों को देने का निषेध किया गया है। तलवार, छुरा आदि भी न दें, क्योंकि इन साधनों के द्वारा भी कभी भी कोई दुर्घटना घट सकती है। जिनसे आरंभ-समारंभ अधिक होता हो, वैसे साधन भी नहीं देना चाहिए। अपने आवश्यक पाप के लिए व्यक्ति को ऐसे साधन रखने पड़ते हैं। और वह इन साधनों का दुरुपयोग भी नहीं करता है, परन्तु दूसरों को देने पर वे उसका दुरुपयोग नहीं करेंगे- यह कौन कह सकता है ? प्रश्न यह उठता है कि पड़ोसी चूल्हा, घट्टी, माचिस, कैंची, चाकू आदि मांगने आएं, तो उसे देना चाहिए या नहीं ? यदि नहीं देते हैं, तो परस्पर मन-मुटाव व तनाव हो जाएगा ? ऐसी स्थिति में क्या करें ?
अधिक आरंभ के सामान नहीं देना चाहिए। आपमें वह कला होना चाहिए कि सामने वाले को कैसे समझाया जाए ? आप मधुर भाषा में योग्य शब्दों के द्वारा उसे इस प्रकार समझाइए- देखो! तुम जो साधन मांगने आए हो, वह मेरे पास है तो, पर मैंने गुरु महाराज से इन साधनों को नहीं देने का व्रत ले लिया है, अतः व्रतधारी होने के कारण मैं ये साधन नहीं दे सकता/सकती हूँ। इसके अतिरिक्त जो साधन चाहिए, वह आप निस्संकोच मांग लें, मैं अपनी शक्ति के अनुसार आपको वे साधन दे दूंगा/दूंगी। इस व्रत के अनुपालन में जीवदया प्रधान है। आपके साधनों से दूसरे हिंसा न करें, अनावश्यक पाप न करें, अनर्थदण्ड का दोष न लगे, कोई दुर्घटना न घट जाए- इसी लक्ष्य से अधिक आरंभ-समारंभ हिंसात्मक साधन देने को मना किया गया है।
295
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org