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भोगोपभोग-परिमाणव्रत- पंचाशक-प्रकरण में आचार्य हरिभद्र ने गुणव्रतों की चर्चा करते हुए दूसरे गुणव्रत (भोगोपभोग परिमाण रूपी व्रत) के सम्बन्ध में कहा है। इस दूसरे व्रत के परिमाण के दो प्रकार बताए गए हैं-
1. भोजन-सम्बन्धी 2. कर्म-सम्बन्धी।
___उपासकदशांगटीका में भी परिमाण के दो प्रकार बताए हैंभोजन-सम्बन्धी 2. कार्य-सम्बन्धी।
तत्त्वार्थ-सूत्र में भी परिमाण के दो सम्बन्ध बताए गए हैं- 1. भोजन-सम्बन्धी 2. व्यापार–सम्बन्धी।
आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक में बताया है कि एक बार उपयोग में आने वाली वस्तुओं का परिमाण करना भोग-परिमाण है और उद्योग-धन्धों का परिमाण करना कर्मरुप उपभोग-परिमाण है। जो वस्तुएँ एक बार काम में आती है, उसे उपभोग कहते हैं, तथा जो वस्तुएँ बार-बार काम में आती है, परिभोग कहते हैं।
उपभोग, जैसे- रोटी, दाल, फूलमाला आदि। परिभोग, जैसे- वस्त्र, बिस्तर, पलंग आदि।'
इसके विपरीत कहीं-कहीं एक बार काम में आने वाली वस्तु को परिभोग एवं बार-बार काम में आने वाली वस्तु को उपभोग कहा गया है। आचार्य हरिभद्र ने श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में– “उपभुज्यते इति उपभोगः" कहा है। इस निरुक्त के अनुसार एक बार भोगा जाने वाला उपभोग है। इसी प्रकार 'परिभुज्यते इति परिभोगः'- इस निरुक्ति से बार-बार भोगे जाने वाले पदार्थ को परिभोग कहा है। उपासकदशांगटीका में भी
1 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/21 - पृ. -9
2 उपासकदशांगटीका - आत्माराम - प. - 32 'श्रावकप्रज्ञप्ति - आ. हरिभद्रसूरि - श्लोक-284- पृ. - 168 4 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 22/38
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