Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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को प्राप्त करता है। चौर्यकर्म की भर्त्सना करते हुए आचार्य हेमचन्द्र ने योगशास्त्र में लिखा है'- जो परधन का अपहरण करता है, वह स्वयं इस लोक एवं परलोक को बिगाड़ता है तथा धर्म (पुण्य), धैर्य (धीरज), धृति (स्वास्थ्य), मति (कृत्य-अकृत्य का विवेक) आदि सद्गुणों का विनाश करता है।
उन्होनें चोरी करने का परिणाम बताते हुए कहा है कि चोरी के पाप से इस लोक में वध-बन्धन आदि फल प्राप्त होते हैं, व परलोक में नरक की भयंकर वेदना की प्राप्ति होती है।
चोरी करने वाला सदा भयभीत रहता है और भयभीत मनुष्य में शान्ति नहीं होती। शान्ति के अभाव में सुख के साधन में जुड़े होते हुए भी वह सुख की अनुभूति से वंचित रहता है।
___ आचार्य हेमचन्द्राचार्य ने कहा है कि- चौर्यकर्म करने वाला कभी भी निश्चिन्त व शान्त नहीं रह पाता है। दिन हो या रात, सुप्त हो या जाग्रत, वह हमेशा सशल्ययुक्त रहता है, वह किसी भी स्थान में स्वस्थ नहीं रह पाता है।
गृहस्थ के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है कि वह बड़ी चोरी से बचने का प्रयत्न करे, अपितु यह भी आवश्यक है कि वह उन सूक्ष्म कृत्यों के प्रति भी सतर्क रहे, जो प्रत्यक्ष रूप में चोरी का आभास नहीं हो पाता, परन्तु वे चोरी के ही रूप हैं, जैसेदूसरे की जमीन पर रास्ता बना लेना, करचोरी करना, व्यापार में प्रामाणिकता नहीं रखना, लेन-देन में हिसाब नहीं बताना, दूसरे की वस्तु लेने का मन में विचार करना, स्तेयाणुव्रतधारी को जीवन निर्वाह व निर्माण के लिए अपनी आवश्यकताओं को अल्प नहीं करना, उन्हें सहयोग नहीं देना, किसी भी वस्तु के प्रति लालची-वृत्ति होना, बिना आज्ञा किसी भी वस्तु को उठा लेना आदि।
व्रत का यथाशक्ति परिपालन करते हुए भी असावधानीवश, अथवा प्रमाद के कारण व्रत-पालन में जो स्खलना हो जाती है, उसे अतिचार कहते हैं।
1 योगशास्त्र - हेमचन्द्राचार्य- 2/67 – पृ. - 294
योगशास्त्र - हेमचन्द्राचार्य- 2/69 - पृ. - 295 2 योगशास्त्र - हेमचन्द्राचार्य- 2/70 - पृ. - 295
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