Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
View full book text
________________
का अभाव होता जा रहा है। साड़ी सूरत की है और ऊपर छाप लगाएँ अमेरिका की, कलम है- भारत की, छाप लगी है, चीन का, घी-तेल के डिब्बे में मिलावट है और ऊपर लिखा है- शुद्ध तेल है। अन्दर माल स्वदेशी है, बाहर सिक्का विदेशी का है। इस प्रकार के व्यापार करने वाले अपने व्रतों के व्यापार करने वाले अपने व्रतों को दूषित कर लेते हैं, अतः आचार्य हरिभद्रसूरि ने पंचाशक-प्रकरण में यही निर्देश दिया कि श्रावक इस प्रकार के अतिचार का त्याग करें।'
__डॉ. सागरमल जैन के अनुसार- ये पाँचों दृष्ट-प्रकृतियाँ आज भी अनुचित एवं शासन द्वारा दण्डनीय मानी जाती है, अतः इनके निषेध अप्रासंगिक या अव्यावहारिक नहीं है। वर्तमान युग में ये दुष्प्रवृत्तियाँ बढ़ती जा रही है, अतः इनके नियमों का पालन अपेक्षित है।
पंचाशक में बताए अनुसार अदत्तादानविरमण-व्रतधारी, जो श्रावकचोरी का परित्याग करता है, अर्थात् परद्रव्य को ग्रहण करने का त्याग करता है, उसे अदत्तादानविरमण-व्रत का फल प्राप्त होता है। फल की प्राप्ति के विषय में आचार्य हेमचन्द्राचार्य ने योगशास्त्र में कहा है कि जो पर धन को ग्रहण करने का त्याग करता है, उसके सामने स्वयं ही स्वयंवरा बनकर लक्ष्मी चली आती है, उसके समस्त अनर्थ (विघ्न) दूर हो जाते हैं। सभी स्थानों पर उसकी आशंसा होती है। वह सभी के हृदय का विश्वासपात्र बनता है, यहाँ तक कि उसे स्वर्ग-अपवर्ग का सुख भी प्राप्त होता है।
पदार्थ ग्रहणे येषां, नियमः शुद्धचेतसाम् । अभ्यायान्ति श्रियस्तेषां! स्वयंमेव स्वयंवराः । ।74|| अनर्था दूरतो यान्ति, साधुवादः प्रवर्त्तते।
स्वर्ग सौख्यानि ढोकन्ते स्फुटमस्तेय चारिणाम् ।।75 ।। अतः, अस्तेय-व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए।
1 डॉ. सागरमल जैन अभिनन्दनग्रन्थ - लेखन्श्रावक आचार को प्रासंगिकता का प्र न - पृ. सं. - 330 2 प्र न व्याकरणसूत्र - संवरद्वार-4 - पृ. सं. - 215
249
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org