Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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'सम्यग्दर्शन से मोक्ष' नामक ग्रन्थ के अनुसार राजकीय नियमों का उल्लंघन करना, भूमि--भवन पर अवैध कब्जा करना, सार्वजनिक, अथवा शासकीय भूमि पर अतिक्रमण करना आदि विरुद्धराज्यातिक्रम है। इसमें कर–अपवंचन भी समाहित है।
अणुव्रतधारी श्रावक अपने व्रत को सुरक्षित रखने के लिए ध्यान रखे कि जिस राज्य की ओर से निषेध हो, उस देश में, उस स्थान में नहीं जाना चाहिए, क्योंकि आज्ञा के बिना उस देश-प्रदेश में जाना भी चोरी है। इस अपेक्षा से यह अतिचार है, अतः आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण में यही संकेत कर रहें हैं कि श्रावक इस अतिचार का त्याग करें। कूटतुला-कूटमान- आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण में अणुव्रतों के अतिचारों का वर्णन करते हुए तृतीय अणुव्रत के चतुर्थ अतिचार के विषय में निम्न प्रकार से कहा है
कम तौलना, अर्थात् नियत तौल से कम तोलना, तेल आदि को कम मापना, अर्थात् नियत माप से कम मापना कूटतुला-कूटमान है।'
उपासकदशांगटीका में तोलने और मापने मे झूठ का प्रयोग, अर्थात् देने में कम तोलना, लेने में अधिक तोलना को कूटतुला-कूटमान कहा है।
श्रावकप्रज्ञप्ति में तुला का अर्थ तराजू और माप का अर्थ मापने का आढक, प्रस्थ आदि किया है। इनका देने के लिए कम और लेने के लिए अधिक प्रमाण रखनाइसे कूटतुला-कूटमान कहते हैं।"
तत्त्वार्थ-सूत्र में न्यूनाधिक नाप वाट या तराजू आदि से लेन-देन करना कुटतुला-कुटमान है।
___ सम्यग्दर्शन से मोक्ष के अनुसार कम माप-तौल से दूसरे को देना और ज्यादा माप-तौल से स्वयं लेना कूटतुला-कूटमान-अतिचार कहलाता है।
1 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 1/14 - पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 1/14 - पृ. उपासकदशांगटीका - आचार्य अभयदेवसूरि- 1/47 - 4 श्रावकप्रज्ञप्तिटीका - आचार्य हरिभद्र - गाथा - पृ. - 158 'तत्त्वार्थ-सूत्र - आचार्य उमास्वाति-1/22 सम्यग्दर्शन से मोक्ष - साध्वी सम्यग्द निाश्रीजी-7/208 - पृ. - 209
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