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तत्त्वार्थ-सूत्र के अनुसार चोरी की वस्तु लेना स्तेनाहृत है। सम्यग्दर्शन से • मोक्ष के अनुसार चोरी का माल खरीदना, चोरों से सम्बन्ध बनाए रखना स्तेन अदत्तादान है।
तृतीय अणुव्रतधारी श्रावक यह ध्यान रखे कि तीसरे अणुव्रत को सुरक्षित रखने के लिए चोरों से सम्बन्ध स्थापित न करे, चोरों के साथ मित्रता आदि का सम्बन्ध न बनाए, चोरों के साथ न व्यापार करे और न उन्हें व्यापार में सहयोग दें, क्योंकि सम्बन्ध स्थापित करना व व्यापार में सहयोग देना चौर्यकर्म का ही एक रूप है, अतः आचार्य हरिभद्रसूरि ने पंचाशक - प्रकरण के श्रावकधर्मविधि में निर्देश दिया है कि श्रावक अपने अणुव्रत को अखण्ड रखने के लिए स्तेनाहृत अतिचार का परित्याग करे । ' तस्कर - प्रयोग पंचाशक- प्रकरण में आचार्य हरिभद्रसूरि ने प्रस्तुत अतिचार की व्याख्या करते हुए कहा है कि चोर को चोरी करने की प्रेरणा देना तस्कर - प्रयोग है । 2
उपासकदशांगसूत्र की टीका में नवांगी टीकाकार आचार्य अभयदेवसूरि के अनुसार चोरों को चोरी के कार्य में प्रवृत्त करना एवं 'इस प्रकार करो - ऐसी आज्ञा देना तस्कर - प्रयोग है। श्रावकप्रज्ञप्ति में भी इसी प्रकार कहा गया है । 1
तत्त्वार्थ सूत्र में आचार्य उमास्वाति के अनुसार चोरी को बढ़ावा देना, चोरी के उपाय बताना, चोरों को सहयोग देना तस्कर - प्रयोग ( तदाहृता) है। सम्यग्दर्शन से मोक्ष में कहा गया है कि चोरी करने की प्रेरणा देना, चोरी की योजना बनाना, चोरों की
9 सम्यग्दर्शन से मोक्ष साध्वी सम्यग्दर्शनाश्रीजी- 7/206 - पृ. - 209
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1 पंचाशक- प्रकरण -
आचार्य हरिभद्रसूरि - पृ. - 5
2 पंचाशक - प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 1/14 - पृ. - 5
3 उपासकदशांगटीका - आचार्य अभयदेवसूरि- 1 /47 - पृ. - 43
4 श्रावकप्रज्ञप्तिटीका - आचार्य हरिभद्र - गाथा - 268 - पृ. - 158
' तत्त्वार्थ- सूत्र - आचार्य उमास्वाति - 7 / 22
' सम्यग्दर्शन से मोक्ष - साध्वी सम्यग्दर्शनाश्रीजी - 7 / 205 - पृ. - 208 7 पंचाशक - प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - पृ. - 5
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