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तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार लाठी या चाबुक आदि से प्रहार करना वध अतिचार
डॉ. सागरमल जैन के अनुसार अंगोपांग का छेदन और घातक प्रहार करना वध-अतिचार है।'
चैत्यवन्दनकुलक-टीका के अनुसार आर या कील चुभाना, बेंत, लात, चूंसे, थप्पड़ आदि से मारना, असभ्य, अश्लील वचन बोलना आदि सभी वध-अतिचार है।' 3. छविच्छेद-अतिचार - आचार्य हरिभद्र द्वारा विरचित पंचाशक-प्रकरण के अनुसार मनुष्य, अथवा पशुओं के अंग को काटना, छेदना आदि छविच्छेद अतिचार हैं।
उपासकदशांग-टीका के अनुसार क्रोधावेश में किसी का अंग काट डालना, मनोरंजन के लिए कुत्ते, बिल्ली आदि पालतू पशुओं की पूंछ, कान आदि काट देना छविच्छेद-अतिचार है।
चारित्रसार पुरुषार्थसिद्धपाययु के अनुसार पशु-पक्षी आदि की कान, जीभ आदि छेदना छविच्छेद अतिचार है।
तत्त्वार्थ-सूत्र के अनुसार कान, नाक, चमड़ी आदि अवयवों का भेदन या छेदन करना छविच्छेद-अतिचार है।
चैत्यवन्दनकुलक-टीका के अनुसार सुन्दर दिखने के लिए कान, नाक, पूंछ आदि काटना छविच्छेद अतिचार है।'
डॉ. सागरमल जैन के अनुसार किसी की आजीविका को छीनना या उसमें बाधा डालना भी छविच्छेद अतिचार है।
3 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 1/10 - पृ. -4 4 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि - 1/45 - पृ. - 40 5(क) चारित्रसार - चामुण्डाचार्य - भाग- 1/239
(ख)पुरुषार्थ सिद्धयुपाय - अमृतचन्द्राचार्य - गाथा- 'तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति -1/20 - पृ. - 187 7 चैत्यवन्दनकुलकटीका - श्रीजिनकुशलसूरि -पृ. - 161 ४ डॉ. सागरमल जैन अभिनन्दनग्रन्थ - डॉ. सागरमल जैन - पृ. -330 9 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 1/10 - पृ. -4
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