Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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जो जीवन-पर्यन्त सत्य का पालन करते हैं, उनकी विश्व में प्रतिष्ठा फैलती है। जैन-श्रावकों का अतीत का इतिहास सत्याणुव्रत से इतना उज्ज्वल था कि वे कोर्ट में ज्यों ही पहुँचते, त्वरित ही अपनी पहचान व छाप न्यायाधीश पर डाल देते थे। व्यक्ति के तिलक को देखकर समझ जाते थे कि ये जैन हैं। सत्य का प्रभाव फैले बिना नहीं रहता है। सत्य के लिए अपने प्राण की कुर्बानी करने वाले आज भी इतिहास के पृष्ठों पर अंकित हैं। राजा हरिश्चन्द्र ने सत्य की रक्षा के लिए राज्य भी त्याग दिया, रामकृष्ण परमहंस के पिता सत्य-पालन के लिए गाँव छोड़कर चले गए। ग्रीस का प्रसिद्ध चिंतक जेनोक्रिटिस था, जिसके लिए यह प्रसिद्धि थी कि वह कैसी भी परिस्थिति में असत्य नहीं बोल सकता है। एक प्रसंग है कि एक बार अदालत में गवाही देने के लिए उन्हें जाना पड़ा। वे गवाही के लिए कटघरे में खड़े हो गए और कटघरे की परम्परानुसार 'मैं झूठ नहीं बोलूंगा'- ऐसा कहते हुए प्रतिज्ञा के लिए धर्म की पुस्तक हाथ में लेने लगे। उसी समय न्यायाधीश ने कहा- महोदय जेनोक्रिटिस! धर्म की पुस्तक हाथ में लेकर आपको प्रतिज्ञा लेने की आवश्यकता नहीं है। हमें विश्वास है कि आप जो बोलेंगे, वह सच ही होगा, क्योंकि सूर्य पश्चिम में उदय हो सकता है, पर जेनोक्रिटिस असत्य नहीं बोल सकता। जेनोक्रिटिस की सत्य के लिए ऐसी प्रतिष्ठा व प्रसिद्धि थी।
___ महापुरुष कहते हैं कि सत्य पर विश्वास रखें व सत्य को जीवन में आत्मसात करें तथा संकल्प करें कि अपने स्वार्थ के कारण झूठ नहीं बोलेंगे, फिर भले ही धन का नुकसान हो, सन्तानों का वैवाहिक सम्बन्ध न हो, व्यापार आगे न बढ़े, मान-सम्मान न मिले, कोई चिन्ता नहीं। यह भी संकल्प करें कि दूसरों की घाति हो, वैसा सत्य भी नहीं बोलेंगे, तब मौन रहेंगे।
तीर्थंकर महापुरुषों ने नहीं, अपितु भारतीय ऋषियों व विद्वानों ने भी असत्य भाषण को क्लिष्ट पाप कहा है। चूंकि असत्य भाषण से व्यक्ति के नैतिक गुणों का पतन तो होता ही है, साथ ही व्यक्ति की विश्वसनीयता भी खण्डित होती है, अतः श्रावक को असत्य का त्याग कर सावधानीपूर्वक सत्य वचन ही बोलना चाहिए। इस अणुव्रत का सावधानी पूर्वक पालन करते हुए यदि कोई दोष लग भी जाए, तो उन अतिचारों का मिथ्यादुष्कृत्य करना चाहिए, अर्थात् तत्सम्बन्धी गलती को गलती के रूप में स्वीकार
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