Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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कस्तूरी, कपूर आदि से मिश्रित् चन्दन का लेप करना चाहिए, क्योंकि चन्दन का लेप संघ में सुख-शान्ति का प्रतीक है।
आचार्य हरिभद्र ने निर्देश किया है कि कम से कम सौभाग्यवती चार नारियाँ प्रभु परमात्मा का प्रौंखन ( न्यौछावर) करें। यहाँ यह भी निर्देश दिया है कि परमात्मा को पौंखते समय सौभाग्यवती नारियाँ उत्तम वस्त्र धारण करें । उत्तम वस्त्र धारण करने के कारण का प्रतिपादन आचार्य हरिभद्र ने प्रस्तुत पंचाशक की छब्बीसवीं गाथा में किया है। वे लिखते हैं कि उत्तम वस्त्र धारण करना शरीर की शोभा के साथ-साथ शुभकर्म के उदय का कारण हैं, क्योंकि उत्तम वस्त्रों के द्वारा सुसज्जित होना उत्तम पुरुषों के प्रति बहुमान प्रकट करना है और अहंकार अभाव में सुन्दर वस्त्र
पुण्य-बन्ध में भी हेतु बनते हैं ।
पुण्यबन्ध को दर्शाते हुए आचार्य हरिभद्र प्रस्तुत पंचाशक की सत्ताइसवीं गाथा मेँ कहते हैं कि प्रतिष्ठा आदि में सुन्दर वस्त्र धारण करने से तीर्थंकर के प्रति सम्मान प्रकट होता है, शास्त्रोक्त होने से शुभ - प्रवृत्ति होती है । सतत् कर्म क्षयोपशम होने से आत्मा निर्मल होती है और जिनाज्ञा पालन के लिए शरीर -शोभन करने से रागादि भावों का अभाव होता है ।
यह स्पष्ट निर्देश है कि आज्ञा-पालन के लिए उत्तम वस्त्रों का धारण न तो प्रदर्शन के लिए करना चाहिए और न ही अहम् के पोषण के लिए। उत्तम वस्त्र पुण्य-बन्ध का कारण हैं, जब तक इसमें अहम् का प्रवेश न हों, लोगों को दिखाने का भाव न हो। अपने सुन्दर वस्त्र देख-देखकर बार-बार प्रसन्न नहीं होना चाहिए । प्रभु की पौंखने से इसी लोक में फल की प्राप्ति होती है।
प्रस्तुत पंचाशक की अठाईसवीं गाथा में आचार्य हरिभद्र कहते हैं कि अधिवासित जिनबिम्ब का पौंखण करने और उसके लिए यथाशक्ति दान देने से स्त्रियों को भी कभी वैधव्य (विधवापन) एवं द्रारिद्र्य प्राप्त नहीं होता है, परन्तु इसके लिए ध्यान रखने की आवश्यकता है कि परमात्मा का पौंखण भावोल्लास के साथ करना चाहिए ।
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1 पंचाशक - प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 8 / 26- पृ. 2 पंचाशक - प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 8 / 27 - पृ. - 140
3 पंचाशक- प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 8 /28 - पृ. - 140
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