Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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कंकणमोचन-विधि - अट्ठाई महोत्सव के पश्चात् कंकणडोराविधि के अनुसार खोलना चाहिए। आचार्य हरिभद्र ने प्रस्तुत पंचाशकविधि की उनपचासवीं गाथा में प्रस्तुत विधि का निर्देशन किया है
महोत्सव पूर्ण होने के पश्चात् पहले की अपेक्षा और अच्छी तरह से पूजा करके कंकणमोचन (प्रतिमाजी को बांधे गए मंगलसूत्र को खोलने रूप कार्य) करना चाहिए। इस अवसर पर भी आर्थिक स्थिति और भावना के अनुसार प्रेतों को पुष्प, फल, अक्षत और सुगन्धित जल से पकाया गया अन्न आदि चढ़ानेरूप भूतबलि और अनुकम्पारूप दान करना चाहिए। उपसंहार - प्रस्तुत प्रसंग का मन में अवधारण करके यह संकल्प करना चाहिए कि मैं आजीवन इस प्रकार की प्रवृत्ति करता हुआ संसार-सागर से पार होऊंगा। चूंकि संसार से पार होने के लिए जिनधर्मरूप नौका ही साधन है, अतः प्रतिदिन परमात्मा की आज्ञानुसार चलना चाहिए। यही बात आचार्य हरिभद्र जिनबिम्ब-प्रतिष्ठाविधि-पंचाशक की पचासवीं गाथा में भव्य जीवों को बोध देते हुए कहते हैं
इसके बाद प्रतिदिन शास्त्रोक्त विधि से चैत्यवन्दन, स्नात्र-पूजा आदि उसी प्रकार करना चाहिए, जिसके करने से भव-भ्रमण का नाश हो। पंचाशक-प्रकरण में जिन-यात्राविधि
आचार्य हरिभद्र यात्राविधि-पंचाशक का प्रतिपादन करने के पूर्व अपने इष्ट को वन्दनरूप मंगलाचरण करते हुए यात्राविधि-पंचाशक की प्रथम गाथा में वे कहते हैं
____ मैं भगवान् वर्द्धमान को नमस्कार करके आगमानुसार मोक्ष-फलदायी जिन-यात्राविधि का सम्यक् प्रकार से संक्षेप में विवेचन करूंगा। सम्यग्दर्शन के आठ आचार - सम्यग्दर्शन मोक्ष की आधारशिला है। मोक्ष की सम्भावना तभी बनती है, जब सम्यग्दर्शन का स्पर्श हो गया हो। सम्यग्दर्शन का स्पर्श हो गया है या नहीं- यह जानने के लिए सम्यग्दर्शन के पाँच लक्षणों- प्रशम, संवेग, निर्वेद,
पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 8/49 - पृ. - 1 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 8/50 – पृ. - 147 - पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 9/1 - पृ. - 148
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