________________
निर्दोष चारित्र वाले शिल्पकार न मिलने पर दूषित चारित्र वाले शिल्पकार से मूर्ति - निर्माण करवानी पड़ी, तो उस शिल्पकार के हित के लिए जिनबिम्ब - निर्माण के समय उसका मूल्य निर्धारित कर लेना चाहिए, जैसे- इतने बिम्ब इतने रुपयों में तुम्हें बनाने हैं और उन रुपयों का भुगतान अंशतः या भोजन, वस्त्रादि सामग्री के रूप में किया जाएगा।
विशेष- ऐसा करने से दूषित शिल्पकार उस द्रव्य का परस्त्रीगमन, जुआ, शराब आदि दुर्व्यसनों में उपयोग नहीं कर सकेगा और इस प्रकार बिम्ब बनाने से मिला द्रव्य, जो कि देवद्रव्य है, के भक्षण का दोष भी नहीं लगेगा। अंशतः पैसा देने से वह जीवनोपयोगी वस्तुओं को ही खरीद सकेगा ।
यदि दूषित चारित्र वाले शिल्पी से प्रतिमा निर्माण करवाने का मूल्य निश्चित नहीं किया गया, तो वह देवद्रव्य का भक्षण करेगा और देवद्रव्य का भक्षण करने से अशुभकर्म का बन्ध होगा, जो अनन्त भव - भ्रमणरूप और नरकादि में भयंकर दुःखरूप फल का प्रदाता होता है। भयंकर अशुभ फलावाले देवद्रव्य भक्षण-रूप कार्य में जो शिल्पी मूल्य-निर्धारण किए बिना नियुक्त किया जाता है, वह शिल्पी पाप रूप प्रवृत्ति ही करता है, इसलिए ऐसे शिल्पी को मूल्य निश्चित किए बिना नियुक्त नहीं करना चाहिए ।
जिस प्रकार किसी अत्यन्त बीमार व्यक्ति को अपथ्य भोजन नहीं देना चाहिए, क्योंकि अपथ्य भोजन उसके लिए हानिकारक होता है, उसी प्रकार भलीभांति विचारकर जो कार्य परिणामस्वरूप सबके लिए दारुण हो, उसे नहीं करना चाहिए ।
आज्ञा के अनुसार कार्य करने पर भी छद्मस्थता के कारण यदि कुछ विपरीत हो जाए, तो भी आज्ञा के अनुसार कार्य करने वाला दोषी नहीं होता है, क्योंकि वह आज्ञा का आराधक होता है और उसका परिणाम शुद्ध होता है।
यदि जिनबिम्ब का मूल्य देने पर भी छद्मस्थता के कारण देवद्रव्य के रक्षण के बदले भक्षण कराने का दोष हो जाए, तो भी उक्त विधि के अनसार जिनबिम्ब का मूल्य देकर आज्ञा की आराधना करने के कारण दूसरे को देवद्रव्य भक्षण कराने का दोष नहीं लगता है, क्योंकि उसका परिणाम शुद्ध 1
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
197
www.jainelibrary.org