Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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दोष नहीं है, इसी बात को स्पष्ट करते हुए आचार्य हरिभद्र प्रत्याख्यानविधि-पंचाशक की उन्चालीसवीं से इक्तालीसवीं गाथाओं में कहते हैं कि
प्राणातिपातविरति आदि व्रतों का स्वीकार त्रिविध ( मनसा, वाचा, कर्मणा ) होने के कारण प्राणातिपातविरमण-व्रत करने वाला प्राणातिपात आदि पाप करने को कहे या अनुमोदन करे, तो व्रत भंग होता है, किन्तु आहार-प्रत्याख्यान में आहार लाने या आहार लाने सम्बन्धी उपदेश दें, तो उससे प्रत्याख्यान भंग नहीं होता है।
इसी प्रकार, आहार का प्रत्याख्यान करने वाले साधु को भी आचार्य, बीमार, बालक और वृद्ध साधुओं के लिए कल्प्य आहार की प्राप्ति हेतु भिक्षाटन करना चाहिए
और इस प्रकार स्वशक्ति के अनुरूप प्रयत्न करके उनको अशनादि आहार उपलब्ध कराना चाहिए।
नए आए हुए मोक्षाभिलाषी भिन्न सामाचारी वाले साधुओं को भी दानमना गृहस्थों के घर बतलाना चाहिए। इसी प्रकार, बीमार होने के कारण समान सामाचारी वाले साधुओं के लिए आहार न ला सकें, तो उन्हें भी श्रद्धालु दाता गृहस्थों के घर बतलाना चाहिए, अथवा स्वयं को और दूसरे साधुओं को जैसी सुविधा हो, वैसा करना चाहिए।
2 पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि - 5/39 से 41 - पृ. - 94
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