Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
View full book text
________________
कई लोगों का यह भी तर्क है कि हम कुछ भी चढ़ाएँ, कैसा भी चढ़ाएँ, अथवा नहीं भी चढ़ाएँ, पर हमारे भाव सुन्दर हैं, तो फिर हमें उत्तम फल की प्राप्ति क्यों नहीं होगी ? उनका तर्क ठीक है कि भाव जब सुन्दर हैं, तो कुछ भी करें, कैसे भी करें, न भी करें, तो फल तो उत्तम ही मिलेगा, पर इस प्रकार की सामग्री चढ़ाने पर व्यवहार-जगत् में आपकी बुराई तो होगी ही, और वे किसी के कर्मबन्धन के निमित्त बनते जाएंगे। चाहे जैसी सामग्री चढ़ाने से तो आपके भी अशुभ कर्म के बन्ध होंगे ही। अतः, भाव-जगत् के साथ व्यवहार जगत् भी सुन्दर होना चाहिए, अर्थात् सुन्दर भावों के साथ बाह्यद्रव्य भी सुन्दर होने चाहिए। इन्हीं बातों को पुष्ट करते हुए आचार्य हरिभद्र पूजाविधि-पंचाशक की चौदहवीं से अट्ठारहवीं तक की गाथाओं में' कहते हैं -
"उत्तम सुगन्धित पुष्प, धूप, सभी प्रकार की सुगन्धित औषधियों, विभिन्न प्रकार के रसों एवं जलों (यथा- इक्षुरस, घी, दूध आदि) से जिन प्रतिमा को स्नान कराना, सुगन्धित चन्दन आदि का विलेपन करना, उत्तम सुगन्धित पुष्पों की माला, नैवेद्य, दीपक, सरसों, दही, अक्षत्, गोराचन तथा दूसरी मंगलभूत वस्तुएँ, स्वर्ण, मोती, मणि, आदि की विविध मालाएँ आदि द्रव्यों से अपनी समृद्धि के अनुसार जिनपूजा करना चाहिए।"
उत्तम द्रव्यों (साधनों) से पूजा करने से भाव भी प्रायः उत्तम होता है। ऐसा भी होता है कि किसी क्लिष्ट कर्म वाले व्यक्ति का भाव उत्तम द्रव्यों से भी उत्तम नहीं होता है और किसी भाग्यशाली जीव का भाव उत्तम द्रव्यों के बिना भी उत्तम हो जाता है। पुण्योदय से मिली उत्तम वस्तुओं का उपयोग जिनपूजा के अतिरिक्त अन्यत्र कहाँ अच्छा हो सकेगा।
इहलोक और पारलौकिक-कार्यों में पारलौकिक-कार्य प्रधान होता है, क्योंकि इहलौकिक कार्य नहीं करने से जो अनर्थ होता है, उससे कहीं अधिक अनर्थ पारलौकिक कार्यों को नहीं करने से होता है। वह पारलौकिक-कार्य भावप्रधान होता है। भावरहित पारलौकिक कार्य लाभदायी नहीं होता है। उत्तम भाव उत्पन्न करने के लिए उत्तम साधन होना चाहिए। जिनपूजा पारलौकिक कार्य है, अतः जिनपूजा में उत्तम साधनों के उपयोग का सर्वोत्तम स्थान है।
पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि-4/14 से 18 – पृ. - 61 से 62
121
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org