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पूजा से होने वाले लाभ – निष्कपट होकर, चित्त की प्रसन्नता से भगवान् की पूजा करने वालों के सर्व दुःख दूर होते हैं, इच्छित फल की प्राप्ति होती है। आनन्दघनजी ने कहा है
चित्त प्रसन्ने रे पूजन फल कह्यू रे पूजा अखंडित अह । कपट रहित थई आतम अरपणा रे, 'आनन्दघन' पदरेह ।।
परमात्मा की पूजा अनन्त सुख प्रदान करने वाली होती है, अनन्त विघ्नों को दूर करने वाली होती है। आचार्य कवीन्द्र सागरसूरीश्वर जी महाराज ने चौंसठ प्रकारी पूजा के अन्तर्गत अन्तरायकर्म निवारण–पूजा में कहा है
__ प्रभुपूजा करो, प्रभुपूजा करो, आया विघन मिट जाएगा। मथुरा नगरी की एक घटना है- जिस प्रकार दावानल वन को भस्म कर देता है, वैसे ही वहाँ मारि का वेग बालक, युवा, वृद्ध आदि सभी प्राणियों को यम के सदन ले जाने लगा। वहाँ पौरजनों के सौभाग्य से मन्त्राहूतवत् दो चारणमुनि धर्मरुचि और धर्मघोष महर्षि पधारे। उनके पधारने से सारे नगर में क्षणमात्र में ही शान्ति हो गई, क्योंकि मुमुक्ष महात्माओं का आगमन कल्याणश्रेणी का आंगन तैयार कर देता है। सिद्धान्तरस के समुद्र वे दोनों मुनि वहाँ से शीघ्र ही अन्यत्र विहार कर गए, क्योंकि समयज्ञ तपोधन एक स्थान पर अधिक नहीं ठहरते। वहाँ फिर मारि चल पड़ी और फैल गई, जिससे लोग मरने लगे। प्रायः क्षुद्रजन छिद्र पाकर उपद्रव करते हैं। वे मुनि कहीं समीप ही थे। श्रेयस् को ईच्छा से नगरजन तत्क्षण ही उनके पास गए और आग्रह कर उन चारण ऋषियों को पुनः नगर में ले आए। पौरजनों ने एकत्र हो सादर निवेदन किया, कि किस प्रकार मारि सर्वदा के लिए चली जाए, आप हम सब पर कृपा करके वैसा उपाय बताइए। तब चारण मुनियों ने कहा- अपने-अपने सदनों के उत्तरंग-द्वार या तोरण-द्वार पर अर्हत प्रतिमा स्थापन कर प्रतिदिन पूजा करना चाहिए, जिससे आप सबका इहलौकिक और पारलौकिक कल्याण होगा। नगरजनों ने वैसा ही किया, जिससे सारे प्रदेश में शीघ्र शान्ति हो गई।
सज्जनजिनवन्दनविधि - आनन्दद्यनजी – सुविधिजिनस्तवन - ऋशभदेवस्तवन – पृ. - 173 'अन्तरायकर्मनिवारणपूजा - कवीन्द्रसागरसूरि - आवश्यक पूजा-संग्रह - पृ. - 176 'चैत्यवन्दनकुलकटीका - श्रीजिनकुशलसूरि - अनु. प्र. सज्जनश्री - पृ. - 76
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