Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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प्रतिस्थापित (फेंकने) के अतिरिक्त कोई विकल्प न हो, तो उन दोनों का उपयोग किया जा सकता है। पानी के आगार – मुनि सदा सचित्त पानी का त्यागी होता है, अतः अचित्त पानी को ही ग्रहण करता है। गृहस्थ-वर्ग भी एकासन आदि प्रत्याख्यान में अचित्त पानी का ही उपयोग करता है, इसलिए यहाँ अचित्त पानी के आगार का वर्णन करते हैं। अचित्त पानी के लेवेण, अलेवेण, बहुलेण, ससित्थेण और असित्थेण- ये छ: आगार हैं। लेवेण (लेपयुक्त) - चांवल, तिल, खजूर आदि का धोया हुआ पानी । अलेवेण (लेपरहित) - जिस पानी में अन्न आदि का कण न हो, जैसे- राख, चूने आदि का पानी। अच्छेण (स्वच्छ) - तीन उकाले का पानी । बहुलेण (धोवन) - चावल, तिल आदि को धोने से निकला हुआ पानी। ससित्थेण (ससिक्थेन) - जिसमें अनाज का दाना रह गया हो, जैसे- चांवल का मांड, चांवल का धोअन आदि। असित्थेण (असिक्थेन) - अनाज के दाने के बिना चांवल का मांड, पानी आदि।
विशेष - ससिक्थ और असिक्थ का भावार्थ यह है कि लेवेण इत्यादि आगारों में जो पानी की छूट है, उसमें अनाज का कण न हो, तो अधिक अच्छा है, परन्तु कोई कण आ जाए, तो छूट है। चरिम (अन्तिम)- चरिम शब्द से दिन एवं वर्तमान भव का अन्तिम भाग विवक्षित है। इसके दिवसचरिम एवं भवचरिम- ये दो भेद हैं। दिवसचरिम – जिसमें दिवस के अन्तिम भाग से सूर्योदय के पूर्व तक चारों आहार का त्याग किया जाता है, वह दिवसचरिम है। भवचरिम - जीवन के अन्तिम समय तक (जीवनपर्यन्त) तीन अथवा चार प्रकार के आहार का त्याग किया जाता है, वह भवचरिम है।
दिवसचरिम एवं भवचरिम प्रत्याख्यान में चार आगार हैं, जो निम्न हैं
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