Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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आयम्बिल (आचाम्ल) – आच, अर्थात् मांड और अम्ल अर्थात् खट्टा रस, जिसमें उड़द, चांवल आदि के खट्टे रस का भी त्याग हो, वह आचाम्ल है।
आयम्बिल में आठ आगार हैं
अनाभोग, सहसाकार, लेपालेप, गृहस्थसंसृष्ट, उत्क्षिप्त-विवेक, पारिष्ठापानिकाकार, महत्तराकार और सर्वसमाधिप्रत्याकार। इन आठ में से पाँच आगारों का वर्णन पूर्व में हो गया है, अतः यहाँ तीन आगारों का विवरण कर रहे हैं। लेवालेवेणं (लेपालेपेन) आयंबिल में भोजन का पात्र, घी आदि से लिप्त हो, पात्र को पोंछने पर भी घी आदि की चिकनाहट रह जाए और उसमें आहार किया जाए, अर्थात् गृहस्थ ने रुखी रोटी, घी वाली रोटी पर रख दी हो, उसको लेकर आहार करने पर भी प्रत्याख्यान का भंग नहीं होता है। गिहत्थसंसट्टेणं (गृहस्थ संसृष्टेन)- गृहस्थ यदि विगय आदि से युक्त चम्मच आदि से रूक्ष आहार बहरा दे, तो उस वस्तु से मिश्रित आहार करने पर भी प्रत्याख्यान का भंग नहीं होता है। उक्खित्तविवेगेणं (उत्क्षिप्तविवेकेन)- रोटी-चांवल आदि पर लड्डू आदि रखा हुआ हो, तो उसे अलग कर बहराएँ, ऐसा करने से प्रत्याख्यान भंग नहीं होता है, परन्तु यदि उन पर प्रवाही गुड़ आदि वस्तु रखी हुई हो, तो वह आहार अकल्प्य है। उपवास (अभक्तार्थ) - जिसमें भोजन का सर्वथा त्याग है, ऐसा प्रत्याख्यान उपवास है। सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक के प्रत्याख्यान होते हैं।
इस प्रत्याख्यान में पाँच आगार हैं
1.अनाभोग 2.सहसाकार 3.पारिष्ठापनिकाकार 4.महत्तराकार और 5 सर्वसमाधिप्रत्याकार।
यहाँ प्रतिस्थापनिकाकार के विषय में विशेष रूप से बताते हैं, कि यदि तिविहार उपवास किया है, पानी की छूट के साथ अवशिष्ट भोजन भी किया जा सकता है। यदि चौविहार उपवास है और पानी तथा भोजन- दोनों अव िाश्ट हों और उन्हें
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