Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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दूध, तेल, मधु और मदिरा - इन चार द्रव - विगय के त्याग में आठ आगार हैं । उक्खितविवेगेणं को छोड़कर पिण्डविगय वाले आठ आगार हैं।
यहाँ यह प्रश्न उपस्थित किया गया कि प्रत्याख्यानों में आगार रखने का क्या प्रयोजन है ?
प्रत्याख्यान करने के पश्चात् असमाधि में, समय- ज्ञान के अभाव में आदि विशेष कारणों के कारण प्रत्याख्यान में दोष न लग जाए, इसलिए आगार रखे गए हैं। प्रत्याख्यान करने के बाद यदि प्रत्याख्यान तोड़ें, तो प्रत्याख्यान भंग के दोषरूप कर्मबन्ध का भागीदार बनना पड़ता है, अतः आगार रखने पर प्रत्याख्यान करने के पश्चात् प्रत्याख्यान आने के पूर्व ग्रहण करना पड़े तो दोष नहीं लगें इस कारण आगार रखे जाते हैं । यही बात आचार्य हरिभद्र ने प्रत्याख्यानविधि - पंचाशक की बारहवीं गाथा में कही है कि नियम भंग से अशुभ कर्मबन्ध इत्यादि महान् दोष लगते हैं, क्योंकि उसमें भगवदाज्ञा की विराधना होती है, जबकि छोटे भी नियम के पालन से कर्म - निर्जरारूप महान् लाभ होता है, क्योंकि उसमें शुभ अध्यवसाय होता है। धर्म में लाभ और अलाभ का विचार करके जिस प्रकार भी अधिक लाभ हो उस प्रकार करना चाहिए, इसलिए प्रत्याख्यान में आगार रखे गए हैं। सामायिक -द्वार - प्रस्तुत द्वार में प्रश्न उपस्थित किया गया है कि प्रत्याख्यान पापों से बचने के लिए है, परन्तु साधुओं ने सभी सावद्य पापरूप व्यापार का त्याग कर निरवद्यस्वरूप सामायिक व्रत को स्वीकार किया है, तो उन साधुओं को प्रत्याख्यान से क्या लाभ है ?
प्रस्तुत प्रश्न का समाधान आचार्य हरभिद्र ने प्रत्याख्यानविधि - पंचाशक की तेरहवीं गाथा में किया है कि सभी पापरूप व्यापारों के त्याग के रूप सामायिक में भी यह प्रत्याख्यान ग्रहण भगवान् की आज्ञा के अनुसार होने से तथा अप्रमत्तदशा की वृद्धि का कारण होने से गुणकारी (लाभकारी) ही है ।
पंचाशक - प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 5 / 12 - पृ. - 84
2 पंचाशक - प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 5 / 13 - पृ. - 84
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