Book Title: Panchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Kanakprabhashreeji
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चार स्तुति वाले नहीं कहा जाता था। उनकी जिस नाम से परम्परा चली आ रही थी, उसी नाम से कथन किया जाता था। दूसरी तरह से वन्दना के तीन प्रकार - आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण के अन्तर्गत् चैत्यवन्दनविधि-पंचाशक की तीसरी गाथा में अन्य प्रकार से भी चैत्यवन्दन की तीन प्रकार की विधि का प्रतिपादन किया है, अर्थात् अपुनर्बन्धक, सम्यग्दृष्टि, देशविरति और सर्वविरति के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट परिणाम के भेद से वन्दना के तीन प्रकार
हैं।
जघन्य चैत्यवन्दन- अपुनर्बन्धक का चैत्यवन्दन करना जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट में से कोई हो, जघन्य ही होता है। अपुनर्बन्धक जघन्य वन्दन करे, तो वह वन्दन जघन्य तो है ही, यदि वह मध्यम और उत्कृष्ट वन्दन करें, तो भी वह जघन्य ही होता है, क्योंकि सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा से उसके परिणामों की विशुद्धि कम होती है। मध्यम चैत्यवन्दन- अविरतसम्यग्दृष्टि का जघन्यादि तीन प्रकार का वन्दन मध्यम ही होता है, क्योंकि उसके परिणामों की विशुद्धि अपुनर्बन्धक से अधिक और देशविरति आदि से कम- इस प्रकार मध्यम होती है। अतः, उसके चैत्यवन्दन मध्यम है। उत्कृष्ट चैत्यवन्दन- देशविरत और सर्वविरत के जघन्यादि तीनों प्रकार के वन्दन उत्कृष्ट ही होते हैं, क्योंकि अपुनर्बन्धक और अविरतसम्यग्दृष्टि की अपेक्षा इन दोनों के परिणाम अधिक विशुद्ध होते हैं।
पुनः, अपुनर्बन्धक आदि प्रत्येक के आधार पर भी वन्दना तीन प्रकार की हो सकती है। अपुनर्बन्धक जघन्यादि तीन प्रकार के वन्दन में से कोई भी वन्दन यदि मन्द उल्लास से करें, तो मध्यम वन्दन और यदि उत्कृष्ट उल्लास से करें, तो उत्कृष्ट वन्दन होता है। इसी प्रकार, अविरत-सम्यग्दृष्टि और देशविरत तथा सर्वविरत के सम्बन्ध में भी समझना चाहिए। प्रश्न - अपुनर्बन्धक आदि में भी परिणामों का उतार-चढ़ाव होता ही होगा ? उत्तर - अपुनर्बन्धक आदि में भी परिणामों का उतार-चढ़ाव होता है।
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