________________
चैत्यवन्दन से इहलौकिक लाभ - परमात्मा के चैत्यवन्दन से इस लोक में अपूर्व लाभ प्राप्त होता है। परमात्मा के दर्शन से धन-धान्य, रिद्धि-सिद्धि, सौभाग्य, यश, मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। प्रभुदर्शन से इहलोक में प्राप्त होने वाले लाभों का विवरण आचार्य हरिभद्र ने चैत्यवन्दनविधि-पंचाशक की पन्द्रहवीं गाथा में किया है
___ चैत्यवन्दन-विधि में सावधानी रखने से प्रायः इस लोक में भी धन-धान्य आदि की हानि नहीं होती है और यदि निरूपक्रम कर्म के उदय से इस लोक में हानि हो, तो भी वह सद्भावों की नाशक नहीं होती है, अर्थात् निरूपक्रम के उदय से हानि हो, तो भी उस हानि में दीनता, द्वेष, चिन्ता, व्याकुलता और भय आदि का अभाव होता है। इस प्रकार कर्मों की कमी तथा आध्यात्मिक-प्रसन्नता होने से परलोक की वैसी हानि नहीं होती है अर्थात् शीघ्र ही मोक्ष प्राप्त होता है।
___ चैत्यवन्दनकुलक की टीका के अनुसार श्रावक-श्राविका गृहकार्य आदि के कारण यथोक्त विधि से सम्पूर्ण चैत्यवन्दन न कर सकता हो, तो वह जघन्य चैत्यवन्दना करे, इससे वह भी निर्धन भावसार धनद के समान इस लोक में धन-धान्यादि, लक्ष्मी और परलोक में स्वर्गलक्ष्मी क्रमशः मुक्ति स्थान को प्राप्त करता है।
प्रवचनसारोद्धार के अनुसार निसीहि आदि दशत्रिकों सहित उपयोगपूर्वक जो व्यक्ति जिनेवरदेव की त्रिकाल स्तुति चैत्यवन्दनादि क्रियाएँ करता है, वह विपुल निर्जरा का भागी बनता है और अन्त में शाश्वत स्थान अर्थात् मोक्ष को प्राप्त करता है।'
अन्य दर्शनों में भी प्रचलित प्रभुभक्ति को चैत्यवन्दनरूप स्वीकार करते हुए आचार्य हरिभद्र ने चैत्यवन्दनविधि-पंचाशक की सोलहवीं गाथा में हृदय की विशालता का परिचय दिया है, जो निम्न प्रकार से है
___ अन्य धर्मों में भी मोक्षमार्ग में दुर्ग की प्राप्ति के समान, अर्थात् मार्ग में चोर आदि से रक्षण के लिए किला आदि का आश्रय लेने के समान जो प्रभुभक्ति प्रसिद्ध है,
1 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 3/15 - पृ. 42 2 चैत्यवंदनकुलकटीका- श्री जिनकुशलसूरि - हि.अनु.प्र. सज्जनश्री - पृ. 101 ' प्रवचनसारोद्धार - श्री नेमिचंद- हि.अनु.प्र. हेमप्रभाश्री - गाथा 68- पृ. 26 द्वार + पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि -3/16 - पृ. 42
98
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org