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अगद
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अगरु
रहित - अगथितो अमुच्छितो अनज्झोपन्नो आदीनवदस्सावी अगब्मिनी स्त्री., गब्भिनी का निषे. [अगर्भिणी], गर्भ धारण निस्सरणपो परिभुञ्जति, म. नि. 2.36; दी. नि. 3.179; न करने वाली स्त्री, बांझ स्त्री - निया ष. वि., ए. व. - अगधितोति विगतलोभगिद्धो, दी. नि. अट्ठ. 3.178.
अगभिनिया गमिनिसा , आपत्ति दुक्कटस्स, पाचि. 433; अगद पु. [अगद], औषधि, प्रतिरोधक औषधि, भैषज्य - - सज्ञा स्त्री., तत्पु. स., प्र. वि., ए. व., गर्भवती न होने भेसज्जमगदो चेव भेसजं चोसधं प्यथ, अभि. प. 330; अगदे का ज्ञान या समझ - गमिनिया अगभिनिसा वट्ठापेति किमि न सण्ठाति, अप. 1.43; अगदे विय अगदो, दी. नि. ....... पाचि. 433. अट्ठ. 1.63; हलाहलं खणेन अगदं भवति, मि. प. 1263B अगमन नपुं, गमन का निषे. [अगमन], न जाना, गमनक्रिया ओसधन्ति तदा आयतिञ्च आरोग्यावह अगद, पे. व. अट्ठ. का अभाव - पदसा अद्धानं अगमनेन अनद्धगनं ... देवतानं 171; अगदेन किर दाठा धोवित्वा एकं सप्पं पेसेतुति,ध. प. इद्धि, जा. अट्ठ. 5.15. अट्ठ. 1.123; - दङ्गार पु./नपुं., व्रण के लिए प्रयुक्त एक अगमनीय त्रि., गमनीय का निषे. [अगमनीय], शा. अ.
औषधीय चूर्ण, हर्रे अथवा आंवला से बनाया गया चूर्ण - गमन न करने योग्य, ला. अ. परस्पर व्यवहार न करने तस्स सो भिसक्को सल्लकत्तो अगदङ्गारं वणमुखे ओदहेय्य, के लिए अनुपयुक्त या समागम (मैथुन) के लिए अनुपयुक्त, म. नि. 3.4; अगदङ्गारन्ति झामहरीतकस्स वा आमलकस्स - हान नपुं., कर्म. स. [अगमनीयस्थान], न जाने योग्य वा चुण्णं, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.2; - दामलक पु./नपुं.. स्थान - रत्तिभागे अन्धकारे सति पुरिसस्स अगमनीयवानं कर्म. स., औषधि के रूप में प्रयुक्त आंवला का फल - नाम नत्थि जा. अट्ठ. 1.476. अगदामलकञ्चेव तथागदहरीतकं म. वं. 5.26; - सम त्रि.. अगमानि स्त्री., जहां गमन या आगमन न हो - न गमितब्ब तत्पु. स., औषधि जैसा, दवा के समान हितकारी - ... अगमानि ते जम्मदेसं न कत्तब्बं अकराणि ते जम्म कम्म, सीलवा, महाराज, सीलसम्पन्नो अगदसमो सत्तानं क. व्या. 647, (द्रष्ट. अकराणि). किलेसविनासने, मि. प. 188; - हरीतक पु./नपुं. अगम्भीर त्रि., गम्भीर का निषे. [अगम्भीर], जो गहरा न हो, औषधि के रूप में प्रयुक्त हरी की जड़ी-बूटी - अगदामलकं अगाध न हो, छिछला - अनिगाधकूलाति अगम्भीरतीरा, जा. चेव तथागदहरीतकं म. वं. 5.26; पाठा. हरितक.
अट्ठ. 6.132. अगन्तु पु., गम के कर्तृ. कृ. का निषे. [अगन्तु], नहीं जाने अगव्ह त्रि., गव्ह का निषे. [अगृह्य], वह, जिसका ग्रहण वाला व्यक्ति - अगन्ता निरयं.... स. नि. 3(2).440. संभव न हो, वह, जिसको कसकर पकड़ना संभव न हो, वह, अगन्थनिय त्रि., गन्ध के सं. कृ. का निषे., एक जुट न जिसको समझना संभव न हो, - यहूपग त्रि., कर्म. स., करने योग्य, आपस में बांधकर नहीं रखने योग्य, नहीं गूंथने पास जाकर ग्रहण न करने योग्य - ... अगरहूपगस्स योग्य - अपरियापन्ना मग्गा च, मग्गफलानि च, असङ्घता च तिणस्स च अनादानं, जा. अट्ठ. 3.101; - यहूपगट्ठान नपुं., धातु-इमे धम्मा अगन्थनिया, ध. स. 1147; द्रष्ट, गन्थनिय कर्म. स., वह भाग जो उपयुक्त न हो, अनुपयुक्त-स्थल - (आगे).
यं यं चम्मस्स अगरहूपगट्ठानं होति, तं तं चजित्वा उपाहनं अगन्धक त्रि., गन्धक का निषे. [अगन्धक], गन्धरहित, कत्वा , जा. अट्ठ. 4.155. निर्गन्ध - यथापि रुचिरं पुष्फ, वण्णवन्तं अगन्धकं ध. प. अगरहित त्रि., गरहित का निषे. [अगर्हित], वह, जो दोषयुक्त 51; अगन्धकन्ति गन्धविरहितं .... ध. प. अट्ठ. 1.215; - न हो, गर्हारहित, अनिन्दित - न आवज्जानि अनवज्जानि, न्धिका स्त्री. - माला सेरेय्यकस्सेव, वण्णवन्ता अगन्धिका, अनिन्दितानि अगरहितानीति .... खु. पा. अट्ठ. 112. जा. अट्ठ. 3.221.
अगरहिय त्रि., गरहिय का निषे. [अगह], अनिन्दनीय, अगन्धता स्त्री॰, भाव., गन्धरहितता - अगन्धताय गन्धेन न निन्दा न करने योग्य - अगरहियं मा गरहित्थ, स. नि. तप्पेति, जा. अट्ठ. 3.221.
1(1).277. अगमसेय्यक त्रि., गब्भसेय्यक का निषे०, ब. स. अगरु' नपुं.. [अगरु], अगर की सुगन्धित लकड़ी और पेड़, [अगर्भशयानक], जो गर्भ में नहीं आया है, जिसने गर्भ में गूगुल का पेड़ - काळागरु तु कालस्मि, तुरुक्खो तु च शयन नहीं किया है, जिसने मातृकुक्षि में प्रवेश या अवतरण पिण्डको, अभि. प. 302; यथा, महाराज, पथवी इट्ठानिहानि नहीं किया है - अगब्भसेय्यका सत्ता येव, मि. प. 132. कप्पूरागरुतगरचन्दन - कुडमादीनि आकिरन्तेपि .... मि.
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