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अध्याय तसिरा ।
१७३४की प्रतिष्ठित प्रतिमा श्री सेजय पालीतानाके उस दिगंबर जैन छोटे मंदिरमें है जो पहाडपर है व जिसको अब श्वेताम्बरियोंने अपने कवजेमें कर लिया है उसके शिला लेखकी नकल यह है
___ " सं० १७३४ वर्षे मूलसंधे सरस्वति गच्छे बलात्कार गणे श्री कुंदकुंदाचार्याम्नाये भट्टारक सकलकीर्ति तत्प? श्री पद्मनन्दी · तत्प? भ० श्री देवेन्द्रकीर्ति तत्पट्टे भ० श्री क्षेमकीर्ति शुद्धाम्नाये वागडदेश शीतलवाड़ा नगरे हूमड़ ज्ञातीय लघसीरवाया कमलेश्वर-गोत्रे दोशी श्री सूरदास तथा सूरमद तयोः पुत्र दोसी सांगीता सरताण देतयोः पुत्रीः ....
............... (दि. जैन डाइ० सफा ८००)
यह भट्टारक ईडर गादीके मालूम होते हैं। ईडर गादीके भट्टा- . रकोंकी नामावली द्वितीय अध्यायमें दी हैं उसके अनुसार पद्मनंदीसे क्षेमकीर्ति तक तीनों नाम मिलते हैं। सकलकीर्तिके पीछे रामकीर्ति तक नाम इस लेखमें नहीं हैं। केशरियाजी या ऋषभदेवजीका जो मंदिर घुलेव जिला उदयपुरमें है उसमें बड़े मंदिरके चारों ओर जो दालानोंमें वेदिया हैं उनमें दिगम्बर जैन मूर्तियां भट्टारकों द्वारा प्रतिष्ठित हैं-इनके कुछ संवत व भट्टारकके नाम इस भांति हैं
सं० प्रतिष्ठाकारक भट्टारक सं० प्रतिष्ठाकारक भट्टारक १७४६ क्षेमकीर्ति १७३४ यशकीर्ति १७७३ देवेन्द्रकीर्ति १७६४ त्रिभुवनकीर्ति १७५३ सुरेन्द्रकीर्ति
१७५४-सुरेन्द्रकीर्ति-यह प्रतिमा श्री ऋषभदेवकी श्याम वर्ण है। इस पर जो लेख है उससे प्रगट है कि धुलेवके सुरेन्द्रकीर्ति भट्टारक द्वारा हमड ज्ञातीय सेठ कानजीकी भार्याने प्रतिष्ठा कराई।
. १७४६-श्री शांतिनाथ स्वामीकी-इसमें जो लेख है उसमें
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