________________
२२८ ]
अध्याय सातवाँ। और भावनगरके सेठ नरोत्तम भीखाभाई व घोधेके त्रिभुवन बावा आदि ५ महाशय पहले शोलापुर आए क्योंकि जैसे अब शोलापुर दान करनेमें प्रसिद्ध है ऐसे पहले भी था। वहाँसे तार करके बबईसे सेठ माणिकचंदनीको बुलाया। सेठजीको धर्मकार्योमें बिलकुल आलस्य न था । आप फौरन गए और वहाके पंचोंको सर्व हाल समझा करके ३५००) रु० का चंदा कराया। उस समय सेठ हरीभाई देवकरणने मंदिर बनने पर प्रतिष्ठा कराना स्वीकार किया। इनके साथमें सेठ रावजी कस्तूरचंद हो गए
और यह ठहरा कि प्रतिष्ठाके समय जो वर्च पड़े उसके दो भाग हरीभाई देवकरण और १ भाग रावजी कस्तूरचंद खर्च करें तथा उस समय तीर्थके भंडार में ११०००) दोनों देवें । सेठ माणिकचंदजो इस बातको पक्की कराके अपनेको बहुत ही पुण्यवान मानते हुए। आप बम्बई लौट आए और उन लोगोंको और स्थानों में चंदा करने भेजा । मुनीम धर्मचंदजी धीरे २ सर्व व्यवस्था सुधारने लगे और बड़े ही भावसे नए मंदिरजीको तय्यार कराने लगे। सेठ माणिकचन्दनीकी खास प्रेरणासे मुनीम धर्मचन्दजी प्रति
____ वर्ष आमद खर्चका हिसाब बनाकर भावनगर तीर्थक हिसाबका और बम्बई भेजने लगे। जैनबोधक अंक मुद्रण। ३०-३१ मास फेब्रुआरी-मार्च सन् १८८८
में सं० १९४३ और १९४४ का हिसाब मुद्रित है
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org