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संयोग और वियोग । [२८५ मांगरोल सभामें हुआ।हमारे सेठजी सबमें गए थे। वीरचंद राघवजीने कहा कि चिकागोमें उन्होंने सम्यग्दर्शन, पुनर्जन्म, कर्म सिद्धान्त, इश्वर सृष्टि कर्ता नहीं ऐसे बहुतसे व्याख्यान व वोष्टन शहरमें दो माम ठहर कर ८० व्याख्यान दिये । आपने कहा कि हालमें अमेरिकावालोंका विश्वास क्रिश्चियन धर्मपर नहीं है। वे जो बात युक्ति व प्रमाणसे सिद्ध होती है उसको ग्रहण करते हैं। यदि जैनी अपने धर्मके उपदेशका क्रम जारी रखें तो हज़ारों आदमियोंका जेनी होना संभव है । आपने वहां गांधी फिलाज़ाफिकल सोसायटी कायम की है। उपदेशके फलस कईयोंने मांसाहार त्यागा। कई एकान्तमें ध्यान करने लगे। कई णमोकार मंत्र जपने लगे। इन्होंने खानपीनेमें अपने धर्मको बिलकुल हानि नहीं पहुंचाई। आगबाटमें १००) ज्यादा करके अलग चूल्हा रक्खा गया था। इन्होंने आगबोटके क्यापटेन और इंग्लैंड अमेरिकाके विश्वासपात्र आदमियोंके सार्टीफिकट भी दिखलाए कि खानपानमें अशुद्धता नहीं की । तौभी बम्बईके मोहनलाल महाराज श्वे० यतिने तकरार की कि इनका प्रायश्चित होना चाहिये । महाराज आत्मारामजी इसकी आवश्यक्ता नहीं मानते थे । तो भी तकरार मिटानेके लिये इनको आज्ञा की कि वे श्रीजिनेन्द्रदेवका अभिषेक व पूंना करें, एक नौकार मंत्रकी माला जपें व योगशास्त्रके एक अध्यायका पाठ करें, इतना प्रायश्चित्त दिया । वीरचंदनी २२ मास इस - यात्रामें रहे थे। .
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