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महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५८१ ने तारंगाजीपर चलनेवाली तकरारको आपसमें निवटानेका बादा किया। रविवारको सबेरे पर्वतपर पहुंचे। पर्वतपर ठहरानेका सुप्रबन्ध था । ४००० आदमियों के बैठने लायक मंडप था। रात्रिको हमारे सेठनीके सभापतित्वमें उपदेशक सभा हुई जिसमें सेठ मूलचंद किसनदास कापड़िया सम्पादक “ दिगम्बर जैन "ने सभाके लाभ बताए । सोमबारसे जल्से शुरू हुए। ६००० जैन एकत्र थे। ठाकुर साहब, पृथ्वीसिंह तखत सिंहनी व सर्कारी अमलदार वर्ग उपस्थित थे । सेठ माणिकचंदजीने सभापतिका प्रस्ताव करते हुए कहा कि हमारे सभापति इंग्रेजी मराठीके विद्वान, धर्मात्मा तथा एक प्रतिष्ठिा पुरुष हैं । इनके बड़ोंने इसी तीर्थपर एक शिखरबंद मंदिरकी प्रतिष्ठा कराई है । सभामें १३ प्रस्ताव पास हुए, इनमें मुख्य ये थे (१) शिखरजीके निकालपर सेठ माणिकचंदजी आदिका आभार (२) मुम्बई समाचार, गुजराती व अन्य पंचांगोंमें वीर संवत् व दि. जैन त्योंहारकी टोप रहे व इसका प्रबन्ध सेठ माणिकचंदजीके सुपुर्द हुआ। (३) जैनमित्रके सम्पादक शीतलप्रसादजी नियत हुए । तारंगानीमें सभाके उपदेशक खाते आदिके लिये करीब १५००) के चंदा हो गया। इसमें सभापति और सेठनी प्रत्येकने २०१) दिये । यहां मंदिरजीके ध्वजा दंड चढाई गई जिसमें ५०००) की उपन हुई।
जैन महिलाओं की एक भारी सभा सेठ हीराचंद अमीचंदकी धर्मपत्नी नवलबाईकी अध्यक्षतामें हुई। इसमें श्रीमतो मगनबाईनीने अहमदावादमें दिगम्बर जैन श्राविकाश्रम स्थापित होनेकी आवश्यक्ता बताई और स्वयं १०००) देनेका उत्साह
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