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अध्याय बारहवां । भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महा सभाका, जिसके सेठ माणि
कचंदजी सभापति थे, १५वां वार्षिकोत्सब भा० दि० जैन महा मुजफ्फरनगरमें रायसाहब द्वारकासभा मुजफ्फर- प्रसादजी सब इंजीनियर कलकत्ताके नगर में। सभापतित्वमें सानन्द हुआ। तथा भारत
जैन महामंडलका भी, जिसका पूर्व नाम जैन यंग मेन्स एसोसिएशन था, वार्षिक जल्ला बाबू जुगमन्दिरलाल जैनी एम. ए. बैरिष्टरके सभापतित्वमें हुआ । सेठनी नहीं आसके । श्रीमती मगनबाईजी, चंदाबाईजी, गंगाबाईजी आदि महिलाएँ परिषदके लिये आई थीं । ब्र० शीतलप्रसादजी, व कुंवर दिग्विजयसिंहनी भी आए थे, जिनके व्याख्यानोंका अच्छा प्रभाव पड़ा। कुंवर दिग्विजयसिंहजी पहले क्षत्री ठाकुर आर्यसमाजके अनुयायी थे पर पं० पुत्तलाल इटावाकी संगतिसे जैन धर्मको श्रेष्ठ जान पहले जैनी हुए । अब वे ब्रह्मत्रारीकी ७ प्रतिमाके नियम पालते हैं। अपने तीन पुत्र व स्त्री होते हुए भी घरसे स्नेह हटा दिया है। चैत्र सुदी ३ ता. २ अप्रैल १९१२को महासभाके मंडपमें
ही भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महिला परिमहिला परिषदका २ पदका, जो शिखरजीमें स्थापित हुई थी, रा:जल्सा व मगन- दूसरा अधिवेशन बड़े प्रभावसे हुआ।३००० बाईका उद्योग । स्त्री संख्या थी । शहरकी प्रतिष्ठित अनैन
महिलाएं भी आई थी । श्रीमती चमेलीबाई लाला अजितप्रसाद खज़ाञ्चीकी धर्मपत्नीने, जो बहुत उदारचित्त हैं, सभापतिका . आसन ग्रहण किया था। जैसे
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