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अध्याय बारहवां। महत्त्व बताया। तब लोगोंने प्रतिमानीकी स्थापना होनेपर दर्शन करना कबूल किया । सेठजीने चैत्यालयके लिये सूरत व अन्यत्रसे जिनबिम्ब भेजना स्वीकार किया। धन्य सेठजीका धर्म प्रेम व श्रद्धा! जेष्ठ सुदी ५ अर्थात् श्रुत पंचमी वीर सं. २४३७की बहुत
___ नामांकित हुई कि उस दिन ता० १ जून श्रुत पंचमीमें बेलगांव १९११को एक काम तो यह हुआ कि जिसकी दि० जैन बोर्डिंगका कामनाको हृदयमें रखते हुए आरा निवासी स्थापन व सेठजीका बाबू देवकुमारजी स्वर्गधाम पधारे थे अर्थात गमन। ब्रह्मचारी नेमीसागर और बाबू कीरोड़ोचंद
आराके उद्योगसे बहुतसे ताड़पत्रके ग्रंथ एकत्र करके बड़े ठाठसे जैन सिद्धान्त भवनकी स्थापना हुई जिसमें ब्र० शीतलप्रसादनी भी शरीक हुए थे तथा सठनीने सहानुभूति प्रदर्शक तार भेना था। इसी दिन बेलगाममें श्रीयुत धर्मराव सुबेदारके २००००) रु. के दानका कार्य अर्थात् ५० छात्रों के लायक एक भाड़ेके मकानमें दिगम्बर जैन बोर्डिंगकी स्थापनाका जल्सा हुआ। हमारे सेठजी व अन्य आसपासके भाई पधारे थे । कुंभोत्सव होकर गाजेवाजेसे स्थानपर जाकर सरस्वती पूजन हुई। फिर सेठ हीराचंद नेमचंद शोलापुर सभापति नियत हुए । फिर ए० बी० लट्टे आदिके भाषण हुए । नियमावली व १७ मेम्बरोंकी कमेटी ठीक की गई। सभापति ए० पी० चौगले वकील व मंत्री वालप्या भुनप्पा मिरजी हुए । सुबेदार साहबने कहा कि वह रकम टूष्टियोंके सुपुर्द की गई। १४०१) व्याज प्रति वर्ष आवेगा सो एक वर्षका मैं अभी
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