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अध्याय बारहवां ।
पास हुए। जिनमें मुख्यये थे । (१) ता० २३ दिसम्बर १९१२ को जो उपसर्ग दिहली में बड़े लाट वाइसरायको हुआ उसपर खेद प्रकाश व उससे रक्षित रहनेपर हर्ष (२) आगामी अधिवेशन पालीताना सिद्धक्षेत्र पर हो । श्रीमान् पंडित गोपालदासजीको स्याद्वादवारिधिके पदका अभिनन्दन पत्र व न्यायवाचस्पतिकं पदका संस्कृत मानपत्र जो कलकत्तेकी विद्वज्जन समाजसे आया था सो अर्पण किया गया। यहां रथोत्सवकी बोली २५००) की हुई जिसमें सेठ माणिकचन्द पानाचन्दने खवासीकी बोली २०१) रु. में ली ।
श्रीमती मगनबाईजीने भी इस मौकेपर ता. २८ और ३१ दिसम्बरको दो स्त्री सभाएं कीं । एकमें श्रीमती नानीबाई गजार (अजैन) वनिताविश्राम की संचालिका और दूसरीमें सेठ सुखानंदकी धर्मपत्नी प्रमुखा हुई । अनेक उत्तम व्याख्यान हुए। श्राविकाश्रम बम्बईको ३६७) का लाभ हुआ इस सभा में प्रान्तिक सभाको कोई फंड नहीं हुआ इसका कारण यह हुआ था कि बाबू अजितप्रसादजीने अपना विद्वत्तापूर्ण व्याख्यानमें यह बताया था कि जैनियोंको परस्पर खान पनके साथ परस्पर सम्बन्ध भी करना चाहिये ऐसा ही प्राचीन शास्त्रीय नियम था । इस वातको सुनकर यहांके मारवाड़ी लोग भड़क उठे थे। इसीसे धनवानोंको हाथ सकोड़ने का मौका
लग गया ।
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