Book Title: Danvir Manikchandra
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 977
________________ ८८० ] अध्याय तेरहवां । प्राप्त हो और अधोगत जैनसमाजकी सेवाके लिये; नहीं, उद्धारके लिये आपका फिर भी भारतमें अवतार हो, यह हमारी हार्दिक कामना है। आपके कुटुम्बके साथ भी इस भयानक आपत्तिके समय हम समवेदना प्रकाश करते हैं। शान्तिः शान्तिः । “ सत्यवादी" (बम्बई) जुलाई १९१४ दानवीरका देहपात। " अच्छा-बुरा बस नाम ही रहता सदा है लोकमें, वह धन्य है जिसके लिए हों लीन सज्जन शोकमें ॥" -जयद्रथवध । यह प्रकट करते हुए हमें बड़ा ही दुःख होता है कि ता० १६ जुलाई की रातको २ बजे श्रीमान् दानवीर सेठ माणिकचन्द हीराचन्द जे. पी. का एकाएक स्वर्गवास हो गया । दो घंटे पहले जिमकी कोई कल्पना भी न थी, वह हो गया। भारतके आकाशसे एक चमकता हुआ तारा टूट पड़ा, जैनियोंके हाथसे चिन्तामणि रत्न खो गया, समानमन्दिरका एक सुदृढ़ स्तंभ गिर गया । जहाँ जब निसने यह खबर सुनी, वही भोंचकसा होकर रह गया और 'हाय हाय ' करने लगा । मृत्युकी वह अचिन्त्य शक्ति देखकर विचारशील काप उठे। सेठ माणिकचन्दनीसे हमारा जो कुछ परिचय रहा है, उससे हमारा हृदय कहता है कि उनके स्वर्गवाससे जैनसमानकी जो बड़ी भारी हानि हुई है, उसकी पूर्ति होनेका इस समय कोई भी चिह्न नहीं दिलखाई देता है और वह पूर्ति आगे जल्दी हो जायगी इसकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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