Book Title: Danvir Manikchandra
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 985
________________ ८८८ अध्याय तेरहवां । ग्रन्थकर्ताका प्रयोजन । माननीय सम्पादक, " दिगम्बर जैन,” सेठ मूलचंद किसनदासजी कापड़ियाकी प्रेरणा और सेठ साहबके वे अलौकिक गुण जो ग्रन्थकर्तान स्वयं अनुभव किये हैं और जिनका वर्णन वाचकोंको सुमार्ग पर आकर्षण करनेवाला है इन दोनोंने मुझे प्रेरित किया कि मैं सेठजीकी जीवनी जो एक बहुत बड़ी इतिहासकी वार्ताओंकी माला है लिखनेका उद्यम करूँ। मेरा प्रयोजन इस जीवनके प्रकाशमें अपनी शुभ भावनासे अपना लाभ और दूसरा वाचकोंको पढ़नेसे जो उनके जीवन पर असर पड़ेगा उसका अपूर्व लाभ है। जहां तक मसाला संग्रह कर सका वर्णन यथाशक्ति यथार्थ लिखा गया है तो भी यदि कहीं अज्ञान व प्रमादवश भुल रही हो उसको विज्ञ पाठकगण सुधार लेवें तथा प्रकाशकको खबर करें जिससे आगामी आवृत्तिमें ठीक हो जावै । प्रजा वल्सल व शिक्षाप्रचारके अग्रगामी महाराज सयाजीरावके शांतमय बड़ौधा राज्यमें वीर सं० २४४२-४३ के चातुर्मासमें ठहरकर व रात्रि दिन उपयोग लगाकर इस जीवनचरित्रको आजकी रात्रिमें पूर्ण किया है। यद्यपि इसका प्रारंभ बड़ौधा आनेके पहले हो चुका था पर बहु भाग इसी शुभ स्थानमें ही लिखा गया है।। इस ग्रंथको पढ़कर पाठकगण सेठ माणिकचंदजीके सद्गुणोंका अनुकरण करके पवित्र जिन धर्मके प्रचारमें व जैन जातिको शिक्षित बनानेमें तन, मन, धन अर्पण करनेवाले हों। यही भावना करता हुआ विश्राम लेता हूं और अपने द्वारा रही हुई इस ग्रंथमें त्रुटियोंके लिये सजनोंसे क्षमाका प्रार्थी हूं। दिगम्बर जैन मंदिर, वाड़ी-बड़ौधा। ) पवित्रधर्म व समाजकी वृद्धि चाहनेवालावीर सं० २४४३ मगसर वदी १० ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद ता. २०-११-१६. सम्पादक " जैनमित्र"-सूरत । *समाप्त ।* Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008 1009 1010 1011 1012 1013 1014 1015 1016