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८८२ ] अध्याय तेरहवां । पुरुषों के द्वारा इसके लिए प्रयत्न तक कराते हैं।
सेठजी केवल दानवीर ही थे, वे कर्मवीर भी थे। धनवानोंमें दानवीर तो अनेक हैं और आगे और भी हो जायेंगे, परन्तु सेठनी जैसा कर्मवीर होना कठिन है। उन्होंने जैनसमानके लिए अपने पिछले जीवनमें कई वर्षों तक अश्रान्त परिश्रम किया है। यदि उनकी पिछली चार पाँच वर्षकी दिनचर्या देखी जाय, तो मालूम होगा कि जैनसमाजकी संस्थाओंके लिए उन्हें प्रतिवर्ष कमसे कम तीन महीने प्रवास–पर्यटनमें रहना पड़ा है और अपने व्यापारादिके तमाम काम छोड़कर प्रतिदिन चार पाँच घण्टे प्रान्तिक समा, तीर्थक्षेत्र कमेटी तथा अन्यान्य संस्थाओं के लिए देना पड़े हैं ! समानके किसी कार्यके लिए उनको आलस्य न था। हर समय हर कामके लिए वे कटिबद्ध रहते थे । इस समय दिगम्बर जैनियों के जो डेड़ दर्जनसे अधिक बोर्डिंग स्कूल हैं, उनमें आपकी दानवीरताकी अपेक्षा कमवीरताने अधिक काम किया है।....
सेठनी न अँगरेज़ी के विद्वान् थे और न संस्कृतके; वे साधारण देशभाषाका पढ़ना लिखना जानते थे। परन्तु उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ किया है, उससे बाबू लोग और पण्डितगण दोनों ही बहुत कुछ शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। ज्ञानकी अपेक्षा आचरण अधिक आदरणीय है। उनका अनुभव बहुत बढ़ाचढ़ा था। जैनसमाजके विषयमें जितना ज्ञान उनको था, उतना बहुत थोड़े लोगोंको होगा।....
यदि संक्षेपमें पूछा जाय कि सेठनीने अपने जीवन में क्या किया ? तो इसका उत्तर यही होगा कि जैनसमाजमेंसे जो विद्याकी
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