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दानवीरका स्वर्गवास । [८८३ प्रतिष्ठा उठ गई थी, उसको उन्होंने फिरसे स्थापित कर दिया और जगह जगह उसकी उपासनाका प्रारम्भ करा दिया। सेठ नीके हृदयमें विद्या प्रति अमाधारण भक्ति थी। यद्यपि वे स्वयं विद्यावान् न थे, तो भी विद्याके समान मूल्यवान् वस्तु उनकी दृष्टि में कोई २ थी ।....
संठन, हृदयमें यह बात अच्छी तरह जम गई थी कि अंगरेगी स्कूलों और कालेनोमें जो शिक्षा दी जाती है, वह धर्मज्ञानशून्य होती है। उनमें से बहुत कम विद्यार्थी ऐसे निकलते हैं जो धर्मात्मा और अपने धर्मका अमिमान रखनेवाले हों। अपनी जाति और समानके प्रति भी उनके हृदयमें आदर उत्पन्न नहीं होता है। परन्तु वर्तमान समयमें यह शिक्षा अनिवार्य है-अंगरेजी पढ़े विना अब काम नहीं चल सकता है, इसलिए कोई ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे इनके हृदयमें धर्मकी वासना स्थान पा लेवे । इसके लिए आपने 'जैन बोर्डिग स्कूल' और उनमें स्कूल कालेनके विद्यार्थियों को रखकर उन्हें प्रतिदिन एक घण्टा धर्म शिक्षा देना लाभकारी समझा । इस ओर आपने इतना अधिक ध्यान दिया और इतना प्रयत्न किया कि इस समय दिगम्बर समाजके लगभग २० बोर्डिंग स्कूल काम कर रहे हैं !
संस्कृत पाठशालाओंकी ओर भी आपका ध्यान था-संस्कृतकी उन्नति आप हृदय से चाहते थे; परन्तु इस ओर आपके दानका प्रवाह कुछ कम रहा है-पूर्ण वेगसे नहीं हुआ। इसका कारण यह था कि एक तो कोरी सस्कृत शिक्षाको आप अच्छी न समझते थे-इस समय वह जीविकानिर्वाहके लिए उपयोगी नहीं और
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