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७७०] अध्याय बारहवाँ।
सं. १९६३ में सुरतमें हुआ था उससे अक्षय तृतीयामें व्यव- ताराचंदको १ पुत्रीका लाभ चैत्र वदी १४ हारिक कार्य और सं. १९६५ को हुआ था पर वह वैशाख सुदी
सेठ नवलचंदजीकी ७ को संसारसे कूच कर गई। फिर आषाढ़ . संतान । सुदी १२ सं. १९६७ को निर्मला
नामकी कन्याका जन्म हुआ जो अब आनन्दसे बालक्रीड़ामें लवलीन है । इस वीर संवत् २४३९ में पुत्री माणिकबाईकी अवस्था १५ वर्षकी हो गई थी। वैशाख सुदी ३ के शुभ दिनमें सेठ नवलचंदजीने अपनी इस पुत्रीका पाणिगग्रहण पूना निवासी सेठ जैचंद मानचन्दके सुपुत्र हीरालालके साथ बड़े उत्साहसे जैन विधिके अनुसार बम्बई ऐलक पन्नालाल देशी दवाखानेके जैन वैद्य भरमण्णा बम्मण्णा उपाध्यायसे कराया । यथायोग्य संस्थाओं आदिको दान भी किया गया । अहमदाबादमें सेठ प्रेमचन्द मोतीचंद दिगम्बर जैन बोर्डिंगके
हातेमें थोड़े ही दिन हुए सेठ माणिकचन्दजीकी अहमदाबादमें माता भाबी रूपाबाईजीने एक धर्मशाला बनवा दी
द्वारा थी। एक दिन आपके चित्तमें आई कि १५०००का विद्यार्थियों व अन्य नगरनिवासियोंको औषधालय। शुद्ध देशी दवाओंका दान हो तो बड़ा
उपकार हो । ऐसा विचार कर माताजीने अपने मनका अभिप्राय सेठ माणिकचन्दनीको कहा। सेठजी ऐसे कामोंके लिये सदा ही अग्रगामी रहते थे। आप तुर्त ही अहमदाबाद
और वहां एक वैद्यको तलाशकर श्रुत पंचमी अर्थात् जेष्ठ सुदी
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