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अध्याय तरहवां । छात्रावास बनवाने, स्कूल, औषधालय और श्राविकाश्रम खोलने
और छात्रवृत्तियां देने में खर्च कर दिया । इसके सिवा २॥ लाख रुपयेकी वसीयत भी कर गये हैं, जिसके व्याजसे जैन तीर्थ-रक्षा, परीक्षालय, छात्रवृत्तियां और धर्मो देश आदिका काम होता रहेगा । रुपये का मद व्यय इसे कहते हैं।
“ सरस्वती " (सितम्बर १९१४)
दानवीरका देहान्त । बड़े शोकसे लिखना पड़ता है, कि इस सताहमें जैन जातिका एक रत्न इस अपार संभार उठ गया । बम्बईक जैनकुलभूषण दानवीर स्ट माण नन्द हीरचन्द जे. पी. अब इस संमार में नहीं हैं। संठनीकी विद्वत्ता, धार्मिकता, दानशीलता और उदारताकी जितनी प्रशंसा करें, थोड़ी है। आप सच्चे जैनी और अपनी जातिके अग्रगण्य गुमा थे। मृत्यु मम आपकी अवस्य ६३ वर्षकी थी। आपके समान दानी इस समय भारतमें विरले ही होंगे । इसीसे आप दानवीर कहे जाते थे। जैनियों में आपका ख ली स्थान मुश्किलसे पूरा किया जा सकेगा।
"वेंक्टेश्वर समाचार" (मुंबई) ता. २४-७-१४.
माणिकचन्द हीराचंद जौहरी। माणिकचन्द जौहरीकी मुत्युसे जैनजाति और भारतवर्षका एक जवाहिर उठ गया। माणिकचन्द बंबईके बड़े धनी व्यापारी थे। बहुत दिनोंसे धर्मके अर्थही अपना जीवन उन्होंने समर्पित कर दिया
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