________________
[ ७५३
महती जातिसेवा तृतीय भाग । श्रीमान् सेठ माणिकचंदजीके चित्तको इस समय एक ऐसा धक्का लग गया था कि जिसके कारण आपका स्पेशी बैंकका दिवाला जातीय द्रव्य वहुतसा हानिमें जानेके सिवाय और सेठजीके जिन २ संस्थाओंके द्रव्यकी व्यवस्था आपके चित्तको धक्का | द्वारा होती थी, उसमेंसे प्रायः सर्वको हानि उठानी पड़ी। उसका कारण यह हुआ कि मिस स्पेशीबैंक पर बम्बईवालों का बहुत बड़ा विश्वास था उसका दिवाला निकल गया । स्पेशी बैंक के शेयर बहुतसे सेठजीने दलालोंके कहने में आकर खरीद लिये थे । इस भारी कई लाखकी हानिसे आपके चित्तको इस समय एक बड़ा धक्का लगा था। जिससे श्री शिखरजीकी चिन्ताके सिवाय यह चिंता और भी आपके चित्तपर बैठ गई । इन्ही के कारण आपका देह और भी भीतर २ अशक्त हो गया, गद्यपि बाहरसे आपको अन्तिम दिनतक कोई बीमारी नहीं आई।
मिती श्रावण वदी ९ वीर सं. २४४० वं ता. १६ जुलाई १९१४ को सबेरे सदाकी तरह सेठजीने
सेठजीका स्वर्गवास प्रातः काल उठकर श्री जिनेन्द्र चंद्रप्रभु भगवान्और एक सूर्यका का अभिषेक व पूजन अपने चौपाटी के लुप्त होना । चैत्यालय में किया, फिर जाप, पाठ और
स्वाध्याय करके प्रतिदिन के समान भोजन करके हीराबाग आए और तीर्थक्षेत्र कमेटीके दफ्तर में शामको ६ बजे तक काम करते रहे। इसदिन आप बम्बई श्राविकाश्रम व हीराचंद गुमानजी जैन श्रोडिंगका निरीक्षण करते हुए हीराबाग पहुंचे थे ।
For Personal & Private Use Only
૪૮
Jain Education International
www.jainelibrary.org