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८६२] अध्याय तरहवां ।
प्रिय वांचको, शेठ माणेकचंदजी एक ख गी गृहस्थ तरीके, कुटुंब वत्सल पिता तरीके. जाहेग्मां समान उद्धारक तरिके, सर्वना उद्धारक तरीके, उदार सुजन तरीके, क्षमा, निामिपान ने चारिबनी मूर्ति तरीके पोतानुं जीवन सुगसमय, आनंदमय, दृष्टान्तमय करी गया छे.
सुम्वनिद्रामा शान्त हृदये कांईपण मंदवाड वेठ्या सिवाय एमनो आत्मा निज स्वरूपमा ममाई गयो, एन बतावी आपे छे के " आनुं नाम ते मरण. " एमना जवाथी एमना नामथी जाणनार एवा प्रत्येक जने कांई ने कांई खोयुं छे. कुटुंबीओए अनुकरणीय महात्म्य दृष्टिगंथी जतुं जोयु छे, मित्रोए हृदयनो विश्राम खोयो छे, लोकोए चारित्रनो नमुनो खोयो छे, प्रिय वांचक, मरनारना चारित्र परथी तने ग्रहण करवा योग्य काइपण शिक्षण मळ्यु होय अने ते प्रमाणे चाली समाननी सेवा करवामां तुं शक्त्यनुसार बहु नहीं तो थोडो पण भाग लेशे, तो सदरहु लेखनी सार्थकता गणाशे.
__ शेठजीना मरणथी जे शोक थाय छे ते करतां तेमनी जग्या पुरनार कोई पुरुष नजरे नहीं आववाथी विशेष शोक थाय छे.
इश्वर तेमना आत्माने शांति आपो अने तेमना कुटुंबमां तेमनाथी पण विशेष उज्वल कीर्ति प्राप्त करनार पुरुष पेदा थाओ, एन हृदयनी प्रार्थना छे. शांति ! शांति ! ! शांति ! ! !
डाह्याभाई शीवलाल शाह, गिरिडी. ('दिगंबर जैन’ वर्ष ७ अंक ११)
हझारो बाळकोना पिता। अन्य कोमोना मुकाबले आ हरीफाईनां युगमां जैन कोम वणी
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