Book Title: Danvir Manikchandra
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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दानवीरका स्वर्गवास। [८६५ साथे रवाना थयो हतो, पण कोई कारणथी (के जे जाहेरमां न मुकी शकाय) मेनेजरे उतारो आपवा आनाकानी करी हती. आनुं खुल्लु कारण "दिगंबर जैन " पत्रना अधिपति श्रीयुत मुलचंदभाईने नणावता अने ते श्रीमान् शेठ साहेबना जाणवामां आवतां मने बोलावी तेमणे करेली तपास तेमनी एक स्थानकवासी जैन फिरकाना विद्यार्थी तरफनी सहानुभूति, प्रेम, बर्तन अने वार्तालापना समयनो विचार करतां आ वखते ते परोपकारी शेठनी मूर्ति म्हारा हृदय समक्ष खडा थाय छे. ते समयने आजे याद करतां, तेमनी अनुकरणीय प्रवृत्ति गाद करता थोडाक श्रु विंदुओ मुबा सिवाय हृदयतुं यथेच्छ शान्नयन थई शकतुं नथी. तेमन सहवासमां आपलां बळी किंवा वृद्धोने तेमना उच्च रिस, ते नी मा लु दृत्ति-निर. भिमानी म वादिमांथी ईक ने कंईक वू शी व नुं मळी आवतुं. .. तेओश्री माधग्ण स्थितिमाथी लक्षाधिपति बन्या हता. नामदार सरकारे तेनने जटश ओफ धी पीस बनावी तेम्नी कीर्ति वधारो को हतो छतां तेओ वतनमा हुँ श्रीमान् छं के मोटो छु एवं कशुए जण तुं नहि.
आजकाल निर्धन स्थितिमाथी सामान्य पैना प्राप्ति थली छ एवा केटलाक पुरुषोना सहवासमां आव्या हशो तो जणाई आव्यु हशे के तेमनी प्रकृतिमा केटलो फेरफार थाय छे ? तेओ गामना नहि, पण जगत्ना स्वामी बन्या होय, तेम जगतना पुरुषोने तुच्छ के तृणवत् गणता अभियानमां आंधळा बने छे ! वीरनर माणेक ! त्हारी आवी उदार शक्तिने याद करतां खरेखर मगज भ्रमित थई जाय छे.
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